Deepanjali Sahu  
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Joined 19 October 2018


Joined 19 October 2018
7 APR AT 0:30

without finding it within myself,
without realising it in my mind,
without experiencing it in my heart.

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6 APR AT 1:08

मन की छवी
आंखों से छलकती है।

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1 APR AT 1:29

कि तुम्हारी शिकायत करे
शायद यही वजह थी
तुम गलतियां दोहराते गए

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1 APR AT 1:17

इस धीमी रौशनी में भी
उसके आँखें में
जैसे सूरज की तेज है भरी

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1 APR AT 1:03

उस चांद को देखो
जो तुम्हे देख रहा होगा

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1 APR AT 0:57

जब वक्त तुम्हारे साथ था
और अब तुम्हारे खिलाफ है ।

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19 SEP 2024 AT 23:43

उसके आने से हुई
और जब भी लिखते हैं
कोशिश उसे भुलाने की हुई

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19 SEP 2024 AT 23:36

तुम तक यह पैगाम पहुँचाने की
कि गुस्ताखी भले हमारी थी
लेकिन क्या कसूर थी उसकी

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18 SEP 2024 AT 23:29

तुम्हारे शहर का
तो यह पैर चले जाते
उस दिशा

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18 SEP 2024 AT 23:19

फिर एक रात में थम सी गई

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