Deepali Sanotia   (Deepali Sanotia)
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Joined 26 May 2022


Joined 26 May 2022
3 MAY AT 17:35

माँ
विधा-चोका

माँ अबूझ सी
परिचित पहेली
मैं ना हो पाई
वो मेरी ही सहेली
माँ का आँगन
शीतल बयार है
माँ के होने से
ठंडक अपार है
माँ रस स्वाद
भोजन भरी थाली
माँ हरीतिमा
समृद्ध खुशहाली
माँ फटकार
जीवन परिचय
माँ दुलार है
माँ ही दृढनिश्चय
माँ नित सीख
अनुभवों की कथा
माँ युगान्तर प्रथा

स्वरचित एव॔ मौलिक
दीपाली सनोटीया








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3 MAY AT 7:56

भौतिक सुख सुविधाओं की झांकी में बैठाने वाले अन्तरात्मा को रक्तरंजित भी करते हैं।
जीवन में ऐसा अनुभव क्या ज़रूरी है?

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21 APR AT 10:39

अपने जीवन का सत्य स्वीकार कर जीना भी एक हुनर है, जो हर किसी के पास नहीं होता।

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17 APR AT 23:33

Beauty in ordinary.

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17 APR AT 23:30

पनाह दो पनाह दो
मनुष्यता को पनाह दो
मैं अलग हूँ या श्रेष्ठ
तुम्हे श्रेष्ठ देख
मेरी वाणी में क्यो आह हो
स्वयं को बेहतर बनाना हो तो
प्रतियोगिता भी प्यारी है
किसी और को गिराने की
होड़ एक बिमारी है
पनाह दो पनाह दो
मनुष्यता को पनाह दो

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17 APR AT 8:45

वसुन्धरे, तुझे मेरा कर्ज चुकाना होगा
आज जन्मा हूँ मैं यहाँ
कल तुझे किसी और का भार उठाना होगा
मेरी आस्था धरती में समा गई
अब यहाँ मैं आस्था हूँ
मेरी पीड़ा क्या तुझे समझ आ गई

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17 APR AT 8:10

राम म्हणजे शोध
राम म्हणजे क्षुब्धा
रामच सत्य
राम परिणाम.

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17 APR AT 8:02

राम गहरी आस्था का केन्द्र है,
कोई विषय वस्तु नहीं ।

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17 APR AT 7:45

सत्य शोध करने की वस्तु है तो भटकाव भी अवश्य होगा, किन्तु ये मिलता भीतर ही है।

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16 APR AT 23:46

एक धरती पर रहने वाले
मूल से भी एक ही है
फिर ये मन में भेद कहाँ से आते हैं!

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