जो नदी में कहीं नहीं मिली
उद्गम की वो एक धारा हूँ मैं,
अकेला जला और अकेला बुझेगा
दूर बहुत दूर का तारा हूँ मैं।
- दीपाली-
ये तो फ़क़त बाग़ों में खिलने के लिए हैं
किताबों में दब कर सूख जाते हैं गुलाब
- दीपाली-
सपनों से सफ़लता के अनुप्रास में
इच्छाशक्ति जितना है
जीवन का व्याकरण।
- दीपाली-
इब्तिदा भी तुम इंतिहां भी तुम
तेरे बिन ऐ दोस्त, हर दास्तां अधूरी है
- दीपाली-
जीवन चलते रहने को कोई तो रस्ता हो साथी
जो मंज़िल पा जाते हैं आगे क्या करते होंगे
- दीपाली-
पुकारे जाने पर सब तो नहीं रुकते
कुछ इसलिए भी जाते हैं कि,
पुकारा नहीं गया
तुम एक बार सदैव पुकारना
हर जाने वाले को
ताकि कोई ग्लानि न रहे
ग्लानि न रहे कि
मौत से पहले
तुम लग सकते थे उसके गले
- दीपाली-
लोगों को महसूस करवाते रहो
कि कितने ख़ूबसूरत हैं वे
आलोचना भी करना तो यूं कि
कोई बेहतर ही बने
किसी का दिल दुखाने से
ईश्वर की उम्र कम होती है
- दीपाली-
आसमान के पार कोई जहान मिले
इस छत के नीचे तो दम घुटता है
- दीपाली-
प्रकृति, प्रेम और संगीत
इतना भर ही तो है जीवन
तुम अपने बच्चों से कहना
किसी नदी किनारे बैठ कर
हवाओं के शोर में लिखें
एक प्रेम-पत्र
- दीपाली-