जो नदी में कहीं नहीं मिली
उद्गम की वो एक धारा हूँ मैं,
अकेला जला और अकेला बुझेगा
दूर बहुत दूर का तारा हूँ मैं।
- दीपाली-
ये तो फ़क़त बाग़ों में खिलने के लिए हैं
किताबों में दब कर सूख जाते हैं गुलाब
- दीपाली-
सपनों से सफ़लता के अनुप्रास में
इच्छाशक्ति जितना है
जीवन का व्याकरण।
- दीपाली-
इब्तिदा भी तुम इंतिहां भी तुम
तेरे बिन ऐ दोस्त, हर दास्तां अधूरी है
- दीपाली-
जीवन चलते रहने को कोई तो रस्ता हो साथी
जो मंज़िल पा जाते हैं आगे क्या करते होंगे
- दीपाली-
पुकारे जाने पर सब तो नहीं रुकते
कुछ इसलिए भी जाते हैं कि,
पुकारा नहीं गया
तुम एक बार सदैव पुकारना
हर जाने वाले को
ताकि कोई ग्लानि न रहे
ग्लानि न रहे कि
मौत से पहले
तुम लग सकते थे उसके गले
- दीपाली-
लोगों को महसूस करवाते रहो
कि कितने ख़ूबसूरत हैं वे
आलोचना भी करना तो यूं कि
कोई बेहतर ही बने
किसी का दिल दुखाने से
ईश्वर की उम्र कम होती है
- दीपाली-
इंक़लाब खोज ही लेता है रास्ते अपने
दरिया का सारा पानी
समुद्र में नहीं मिलता
- दीपाली-
जब तुम कभी किसी मौके पर 'कभी-कभी' के 'अमिताभ' सी कविता सुनाओगे तो मैं कहीं भीड़ में बैठी 'राखी' सी सुनूंगी पर फ़िर ताली नहीं बजाऊंगी जैसा उसने किया, मैं तो नाचूंगी कि नटराज की प्रतिमा में हलचल होगी और गाऊंगी कि गंधर्व भी सुनेंगे वो राग जिसके हर स्वर से प्रेम की ध्वनि का आविर्भाव होगा।
चलायमान हो जाएंगे त्रिभुवन के सूर्य और तारे जब मेरे गायन नाद से अक्षर आएंगे कि 'वो कविता मेरे लिए थी'।
-
गर ये सूरज बुझ जाए तो दीप भरी एक नगरी हो
इन बंजर हालातों पर उम्मीद भरी एक बदरी हो
- दीपाली-