कभी किसी वक्त कहीं तो
मुलाक़ात एक ऐसी होगी,
खुले आसमां के नीचे ही
आंखों,धड़कनों की बात होगी,
चलेंगे ठंडी हवा संग कार से
खुली छत वाली साथ होगी,,
लहराता दुपट्टा, मुस्कुराहट
थोड़ी फिरकी, शरारत,,
कभी हंसती गाती हुई
सफर की वो कहानी,,
होगी ना मुमकिन ये मुलाक़ात
कभी किसी वक्त कहीं तो,,-
मोहब्बत की हवा के झोंके से बुझ ... read more
जो तुमसे मिला नहीं
तो मैं जिया नहीं,,,
वक्त ये बेवक्त कटा
पास तेरे ये थमा सही,-
पहली दफा आज उसने स्वीकार किया
आंखों पर हमने भी यूं एतबार किया,
बहुत मंशाए मन में मन्नत सी जग गई
ख्वाबों को दुनिया में धड़कने लग गई ,
अचानक गुजरी एक बस वहीं से और
उड़ती हुई में मंशाएं रंज सी गई,
कण कण धूल का बढ़ा तल्ख़ सा था
घाव उसकी ऊंगली पर भी सख्त था,,-
बात ये 56 इंच की नहीं
बेरहमी ही तुम्हारी हैं ,
खौफ रखो उस खुदा का
काफिरों में गिनती तुम्हारी हैं,
धर्म पूछ कर वार किया है
मासूम जिंदगियों को बर्बाद किया है,
जिन्हें छोड़ा वो क्या रहमत हैं
वक्ख भी इससे क्या सहमत हैं ,
क्या अब दंगाई सामने आएंगे
कश्मीर में बदले की आग लगाएंगे,
बुलडोजर वाला तो हिंदू जागा जाएगा,
क्या फिर पहलगाम में हिन्दू बसाएगा,
क्या यही पैगाम है पैगंबर का
जेहादी ही संरक्षक है अंबर का,
क्या अखिलेश भी बंदूक उठाएंगे
देखो-मारो, की बात राहुल कर पाएंगे,
है कुछ ऐसा मुमकिन जो हो पाएगा
56 इंच वला तो सेकुलर नहीं कहलायेगा,
अब तो छोड़ दो राजनीति की रोटियां
कब तक कसाब जैसा बिरयानी खायेगा,
रक्त रंजित हो घाटी इन जेहादियों से
तभी ये घाटी की प्यास बुझाएगा........-
इस वक्त से ना थोड़ी लड़ाई करनी है
कचहरी में दर्द पर सुनवाई करनी है,,
रखना है हर अश्क सबूत के तौर पर
रहम की तुझसे गुजारिश करनी है,,-
लेकर ये ख्वाहिशें अधूरी मुझे कहा जाना हैं
बस तुझे याद करना है और करते ही जाना है-
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,
पतझड़ में भी वो पंख फैलाए
सावन में जैसे बरखा आ जाए,
चंद लम्हों की मुलाकात भी
लगे चाय जैसे हो ईरानी सी,
उलझी जुल्फें, बेशर्म ख़्याल
करे इन पर निगरानी सी,
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,-
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,
पतझड़ में भी वो पंख फैलाए
सावन में जैसे बरखा आ जाए,
चंद लम्हों की मुलाकात भी
लगे चाय जैसे हो ईरानी सी,
उलझी जुल्फें, बेशर्म ख़्याल
करे इन पर निगरानी सी,
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,-
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,
पतझड़ में भी वो पंख फैलाए
सावन में जैसे बरखा आ जाए,
चंद लम्हों की मुलाकात भी
लगे चाय जैसे हो ईरानी सी,
उलझी जुल्फें, बेशर्म ख़्याल
करे इन पर निगरानी सी,
मिली एक तितली आसमानी सी
आंखों में लगी जैसे बेईमानी सी,-
आंखों में उसके नूर है
चश्मा भी दुर्रानी है,
सज धज के आयी कुड़ी वो
लगदी सच्ची कहानी हैं,
हाय दुपट्टा रेशम का वे
कंगन भी खणकांदी हैं,
पग मैं पहने पाज़ेब वो
करके छम दिल धड़कांदी हैं,
अख्खा वीच काजल है
की करा दस्सा अब तेरे नाल,
उलझी उलझी जुल्फें तेरी
बेशरम ख्वबा नु जगान्दी है,,-