नज़र नवाज़ नज़ारा बदल न जाय कही,
जरा सी बात है निकल न जाए कही।
कभी मचान पर चढ़ने की आरजू उभरी,
कभी ये डर की सीढ़ी फिसल न जाय कहीं।
ये लोग होमो हवन में यकीन रखते है,
चलो यहा से चले,हाथ जल न जाय कहीं।
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इन राहों के पत्थर भीं मानुस थे पावों से,
पर मैने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला।
लगता है खुदाई में कुछ तेरा दखल भी है,
इस शाम फिजाओं ने वो रंग नहीं घोला।
सोचा की तु सोचेगी, तूने किसी शायर की,
दस्तक तो सुनी थी पर दरवाजा नहीं खोला।
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मैंने कुछ समझा नही तुमने कुछ समझाया भी नहीं
मैंने कुछ पूछा नहीं तुमने कुछ बताया भी नहीं
क्या कमाल की है वफा तुम्हारी
हर रोज सपनो में आकर हालचाल पूछना चाहा
मुझे मौत कब आयेगी बस यही जानना चाहा।-
नही मिला कोई मुझे मेरी तरह,
शहर में थे सारे तेरी तरह
मैं सबकी जरूरत था जरूरत तक
किसी ने समझा नहीं मुझे मेरी तरह।-
अगर खुदा न करे सच ये ख्वाब हो जाए,
तेरी सहर हो मेरा आफताब हो जाए।
हुजूर आरिजो रुखसार क्या तमाम बदन,
मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए।-
ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा,
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे है।
कोई तोहफा न मिला आज तक,
आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे।
दो कदम साथ चलने को तैयार न था कोई और
आज काफिला बन साथ चले जा रहे थे ।
तरस गए थे हम किसी एक हाथ के लिए और
आज कंधे से कंधे दिए जा रहे थे।
आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है,
कमबख्त हम युही जिंदगी जिये जा रहे थे।-
मोहबत की मिसाल में बस इतना कहूंगा...
बेमिसाल सजा है किसी बेगुनाह के लिये....
बस नज़र नज़र का फर्क है,हुस्न का नही...
मेहबूब जिसका भी हो बेमिसाल ही होता है...
चाहने वालो को नही मिलते चाहने वाले...
मेने हर दगाबाज के साथ सनम देखा है...
में उस रास्ते पे भी अकेला चला हु जहा मुझे किसी की सख्त जरूरत थी...
कत्ल हुआ हमारा इस तरह से किश्तों में की कभी खंजर बदल गए तोह कभी कातिल...
तलाश है दिल लगाने वाले की,तोड़ने वाले हज़ार बैठे है...
चाहत है मरते दम तक साथ देने वाले कि ,कफन ओढ़ाने वाले हज़ार बैठे है...
थोड़ी सी खुशी देके आज़मा ले ख़ुदा ,इन गमो से तोह में मरा नही...
बहुत शौक था मुझे सबकी फिक्र करने का होश तोह तब आया जब मुसीबत में कोई फिक्र करने वाला मिला नही........
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मिल गया होगा कोई गजब का हमसफर।
वरना मेरा यार यू बदलने वाला तो न था।।-
कुछ तो खता की होगी मेने
वरना कुदरत इंसानो की तरह
बेवजह सजा नही देती।-
खामोश दरख्त का दर्द हवा समझती है,
एक बीमार की मुश्किल दवा समझती है।
मैं की मशरूफ हु उसके खयालो में
वो की अब भी मुझें खफा समझती है।
माना कि बंद है लफ़्ज़ों का कारोबार
मगर एहसास की जुबाँ वफ़ा समझती है।-