7 AUG 2018 AT 9:25

इक नज़्म!
जो नहीं चाहती
किसी मंच पे आना,
इक ग़ज़ल!
जो नहीं चाहती
किसी तरन्नुम में बंध जाना

इक एहसास!
जिसको गँवारा नहीं
किन्हीं अल्फ़ाज़ में गढ़ना,
इक रंग!
जिसका मुमकिन नहीं
बाहर से आँखों पे चढ़ना

ये जो दे रहा चुपचाप
इंद्रधनुषी रंग
इस बूँद को
वो तेरा इश्क़ है

- Deepak Shah (आत्मो दीप)