तुम गर अपनें चराग बुझा दोगे
तो क्या रास्ता ना मिलेगा ,
रात कट ही जायेगी
भटकते ही सही ।।
टीस रहती है अपनों के बेवफा होने की ,
वरना लकीरे मेरे हाथो में भी है तो सही ।।
#बेबाककलम-
गुंजाइश थी कि ख़ुदा होता
हक में मेरे गर फ़ैसला होता
रहमते उसकी मान जाता ,अगर
आंधियों का न यूं सिलसिला होता
#बेबाककलम-
ये माना की हमदम कड़वा बहुत हूँ ...
मगर झूठे #वादे से डरता बहुत हूँ,
नहीं हूँ माना तेरी #दुनिया के जैसा ....
मगर #आँख मे भी खटकता बहुत हूँ,
होंगे बहुत ही मेरे #नाम वाले ...
मेरी श्क्सीयत से ऊंचे भी होंगे .,
मगर.. #मैं हूँ ....खुद से ही ...जो हूँ ...
#दूरियाँ कंधो से रखता बहुत हूँ ...॥
तुझे #चाहने का होसला भी कर लूँ ,
#खुद को बदलने की जुर्रत भी कर लूँ ,
मगर मेरे #हमदम मैं ये जानता हूँ ...
मैं अपने #उसूलो पे चलता बहुत हूँ ....
#साहिल " #बेबाककलम-
किसी ने पाबंदियां बुनीं
किसी ने डर फैलाया
आपदा के बड़ा अवसर
किसी को रास आया
किसी के अपनों ने साथ छोड़ा
किसी ने घर लुटाया
कोई बेघर सड़क पर घूमता
किसी ने खुल कर कमाया
जो थे हॉट स्पॉट वो महंगे अस्पतालों में
जो दिहाड़ीदार उसने जीवन गवाया
सील कर मुहं कलम दबा चुपचाप रहिए
खुद तक सोचो और जिंदा रहो
यही आदेश आया ।।
#बेबाककलम-