ये हम भी कह रहे थे उनसे...ये वो भी कह रहे थे हमसे, ये हम भी कह रहे थे उनसे...ये वो भी कह रहे थे हमसे.. के मिलने तो आ ही गए हो..अब दूर जाने का मन नही तुमसे
अनजान लोगों के बीच भी रंगों का खुमार है, कुछ रिश्ते रंगों जैसे हल्के तो कुछ मजबूत है, आया है रंगों का त्यौहार सारे रिश्तों से मिलाने के लिये मेरे दोस्त..., कटाक्ष रखने के लिए तो ओर भी दिन रखे है।
रूहदारियाँ कहने लगी है पास कभी आओ ज़रा, करलें मुलाकातें दो चार दिन, बातें ही बातें हज़ार दिन साहिल तेरा किनारा मैं हूँ, तुझ बिन जीयूँ..कैसे जीयूँ .. तुम बिन सुलगते हम हैं अकेले पास चिरागों के, तुझ बिन आँसू दो चार नहीं, पूरा समंदर हैं हम भरे रूहदारियाँ सुनले कभी, पास कभी आओ ज़रा,
दरवाज़े के बाहर बैठा था वो मासूम जिसने एक रोज़ से कुछ नहीं खाया था, ले जा रहा था मैं, मेरे भोजन से भरा डब्बा माना नहीं मन मेरा... और दिल ने कहा... आज मैं ही बिना खाये रह लेता हूं...... भरके पेट किसी गरीब का 💓