तेरे होने ना होने से अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हमने अपने किरदार को कुछ यूं बना लिया है,
करता हूंँ मोहब्बत अब मैं खुद से "दीप"
इसीलिए खुद को खुद में समा लिया है ।।।-
अपने दिल में,
अगर दर्द हो तो समझ लेना....
मोहब्बत अभी बाकी है💖💖
कुछ डूबे श्रृंगार में, प्रेम-विरह की प्यास में,
कुछ डूबे चित्कार में, व्यंग-हास-परिहास में,
पर जब वह वीर रस का महासागर पाता है
हांँ! तब वह व्यक्ति अपनी लेखनी से
लेख लिखता जाता है...
पूरी कविता नीचे कैप्शन में पढे़ 👇👇👇-
खाली नही तरकश तुम्हारा
धैर्य बनाकर तुम रखो...
भेद दोगे एक दिन लक्ष्य को
साहस बनाकर तुम रखो...
जुर्रत कहाँ जो रोके तुम्है
मंजिल पर निगाह बनाकर तुम रखो...
चीर देना ऐक ही वार में
तलवार पर धार लगाकर तुम रखो...
तलवार पर धार लगाकर तुम रखो...
:- ठा. दीपक सिंह परिहार (दिगाराधीश )✍️
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होने लगी है अब, आदत तेरी...
यह कैसी बंदगी...
यह कैसी प्रकृति हो...
हो गई हो , मेरी सांसो में शामिल...
तुम ही मेरी बंदगी....
तुम ही मेरी "आकृति" हो....
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हो गया हूंँ तेरे इश्क में
कुछ इस तरह पागल ,
कि हर मूरत में "दीप" मुझे
तेरी सूरत नजर आती है...-
मोहब्बत में तेरी ,
कुछ इस तरह गिरा हूँ "दीप"
कि सांसो को अब मेरे ,
आराम नहीं है...-
अपनी इश्क भरी बातों से ,
इतना ना कहर ढा तू ओ जालिम...
के मोहब्बत को भी तुझसे ,
रश्क हो जाए...
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खून को पसीने में तर करके
मेहनत सरे राह विकट करके
जब शाम घर को जाता हूंँ
हजारों विचारों के साथ रास्ता, पैदल ही नापता हूंँ...
आंँख बंद रहती है, मगर पूरी रात जागता हूंँ...-
मसरूफ है हम अभी ,
आपको जवाब हम बाद में देंगे...
जब तक आप कायदे सीखिए ,
फायदे का जवाब हम बाद में देंगे...-
अंदाज-ए-मोहब्बत आपका ,
अलबेला है जालिम...
इश्क-ए-पैमाने को छलकाने के लिए ,
आपकी कातिलाना मुस्कुराहट ही काफी है...✍️-