तेरी यादों से हम भागे बहुत लेकिन भाग न पाये जानाँ
तुझे जाने दिया कि तेरे दामन पर कोई दाग ना आये जानाँ॥
हमारा क्या है हमारे हिस्से शाम, शराब, सितम है लेकिन
दुआ करना किसी महफ़िल में तेरा नाम ना आये जानाँ॥
फरिश्तों से दूरियां हमने इसीलिये बनाई हैं अब
तुम भी फरिश्ते थे मगर किसी काम ना आये जानाँ॥-
-दीप
तेरे बिना अगर मैंं मर रहा हूँ तो तुझे क्या
मैं अपने आलम से गुज़र रहा हूँ तो तुझे क्या
तू मुझे छोड़ कर सुकून से है इतना काफी है
मैं इस दर्द से गर उभर रहा हूँ तो तुझे क्या।
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हज़ारों ख्वाहिशों को जी लिया हज़ारों ख्वाहिशों का दम निकला
तुम्हारा अमीर इश्क़ तो हम जैसे मुफलिसो से भी कम निकला
समंदर में जितनी गहराई थी तब तय कर चुका था मैं,
मैंने तन्हायी से उसका सबब पूछा उसकी ज़िन्दगी में भी फक़त गम निकला-
ख़्यालों के सफर से हक़ीक़त की मंज़िल तक
मेरी कश्ती क्यूँ नहीं जाती आखिर किसी साहिल तक
सारे रास्ते मुझे उसी राह पर ले आते है आखिरन
मुझे जाना होता है मगर सम्त-ए-क़ाफिर तक
मेरी गुहार किसी ने न सुनी मैंने क़ज़ा को गले लगाया
बेरहम आलम था,मैं तडपता रहा वक़्त-ए-आखिर तक
कोई सुराग हासिल न हुआ मेरे क़त्ल का किसी को
थक हार गया ढूंढते-ढूंढते हर इक माहिर तक
और किस तरह से सुबूत दूँ उसको अपनी मुहब्बत का
सब कुछ कर चुका और कर चुका ज़ाहिर तक-
मैं उससे मिला और कहा कुछ भी नहीं,
जहां सब कुछ था पहले रहा कुछ भी नहीं
सारे गमों को पी गया मैं घूंट-घूंट करके,
मैं ज़ारो-ज़ार रोया और बहा कुछ भी नहीं।
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अश्क़ आँख से छलके और शराब में जा गिरे
हकीकत में ठीक थे हम भले ख़्वाब में जा गिरे।-
सितम सनम शराब और चाह
आ जानेजाँ बाहों में आ
मुतमईन मैं नहीं किसी तरह से
मैं खामोश समंदर आ मुझमें समां
सफीने सारे मुझसे रुख़ कर गए
तू भी रुक मत अपने किनारे पे जा
मुझमें बहुत गहरी ख़ामोशी पसरी है
और तुम्हें पसंद नहीं मेरी खामोश ज़बाँ-
मुक़द्दर में लिखा कर लाए हैं दर-ब-दर भटकना,मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं।
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