मिलना तो चाहता है ये दिल हकीकत ना जाने क्यूँ ठुकरा रही है काबिल हूँ भी तेरे या नही ये हाथो की लकीरें फिर उलझा सी रही है एक वक्त सा गुज़र गया, इस इंतजार में कहीं बात आज भी वहीं ख़ामोशी से चल रही हैं।
एकतरफा प्यार तो मीरा ने भी किया था दूरी में प्रेम का आभास तो उन्होने भी महसूस किया था भले किस्मत में लिखी नहीं उनकी महोब्बत फिर भी कृष्ण का इंतजार पूरी उम्र किया था ।
मैं तेरे शहर से अब तेरी ही बात करता हूँ मै रोज तुमसे अब तन्हा मुलाकात करता हूँ बिछडे हम शायद फिर मिल जाये इंतजार में बैठे इन किनारों पर दिन से रात करता हूँ।