Deepak sharma   (DP)
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Optimist
Joined 17 August 2019


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19 OCT 2023 AT 10:00

जितनी कोशिशों से मुझे गिला हैं बहुत।
उतनी कोशिशों में किसी को मिला है बहुत।

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19 OCT 2023 AT 9:58

थी छांव रास्ते में ठहरने के लिए।
मैंने धूप चीन ,थक के हारता रहा।
मेरे अरमान मेरे हाथों से फिसलते रहे,
जो न थी काबुल उसे जाते हुए निहारता रहा।

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8 SEP 2023 AT 7:14

मैं बेचैन रहता हूं जब भीं इतना फैसला होता है।
पास रहके जब दूर जाने का सिलसिला होता है।
ये जो तिरछी नजरों से तुम वार करती हों,
इन कातिल निगाहों से किसका भला होता हैं।

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8 SEP 2023 AT 7:06

उसको समझना भीं इतना मुश्किल नहीं हैं।
वो धड़कता हुआ पत्थर हैं ,कोई दिल नहीं है।
एक वो हैं जो हिफाजत में रहता हैं मेरे आस पास,
उसके हाथ में तलवार हैं मगर वो कातिल नहीं है।

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8 SEP 2023 AT 6:56

मिलना हो और मिलके बिछड़ना हो।
जैसे कश्मीर में हिमानी का पिघलना हो।
जुदा होकर भीं हमने देख लिए इसके मायने,
जैसे खाली पैर तलवार पे चलना हो।

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8 SEP 2023 AT 6:36

वक्त पे पाबंदियां लगती हैं फिर भीं आशिकी में रहता हैं।
मेरा शाम भीं सुबह की जल्दी में रहता हैं।

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1 SEP 2023 AT 4:52

मिली है मुहब्बत तो आजमा के देख लो।
मेरे हमदम थोड़ी बेचैनी ला के देख लो।

मुट्ठी से सुखी रेत फिसलती हैं कैसे,
समंदर किनारे जा के देख लो।

अपनी नींद की स्याही से लिख रहा हूं मैं ,
यकीन न हो तो मेरे ख्वाबों में आ के देख लो।

मुझे दर-बदर भटकना पड़ा तेरे रहते हुए,
अपने खिड़की का परदा हटा के देख लो।




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1 SEP 2023 AT 4:38

तूं कहे तो अपनी बेचैनी का ऐसा शुमार दूं।
नींद तो कलम में भर के कागज पे उतार दूं।

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1 SEP 2023 AT 4:28

हजारों फूल ढूंढ लिए मैंने तुम्हे ढूंढते हुए।
कांटो ने मुझसे पूछा एक दिन चुभते हुए।
इतनी शिद्दत कहां से लाते हो,
रेत पे रोज उसकी तस्वीर बनाते हो।

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1 SEP 2023 AT 4:24

तुम्हारा आना क्या हीं आना हैं ।
अगर ठीक से लग जाए तो जमाना हैं।
मेरे ख्वाब दे रहे मशवरे आजकल ,
अब और आंसू नहीं बहाना हैं।

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