Deepak Rathore   (Deepak)
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Joined 23 January 2019


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Joined 23 January 2019
19 NOV 2021 AT 2:22

कितना बच बच कर चल रहा था मैं
​​कितनी ख्वाहिशों में पल रहा था मैं,

​सूरते हाल छोड़कर दुनिया का
​अपने खिलाफ ही साजिश कर रहा था मैं,

​अपनों को जुदा होते हुए देखा है पहले भी
​इसलिए किसी को खोने से डर रहा था मैं,

​अब जब लगता है कि वो रूठ गया
​तो कतरा कतरा आंसुओं में उतर रहा हूं मैं,

​​सबब ना पूछे कोई मेरी रूह का
​हर वक्त घुट घुट कर मर रहा हूं मैं ꫰






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2 NOV 2021 AT 0:10

लाइफ के हर एक पार्ट ने
लाइफ जीने का आर्ट सिखा दिया

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28 SEP 2021 AT 23:53

ये कहानी तो जिंदा रहेगी जहन में
बस इसका ये किरदार एक दिन मर जाएगा

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22 MAY 2019 AT 0:47

गिर गिर कर संभल रहा हूं मैं
​तेरे खातिर रोज चल रहा हूं मैं

​सबब ना पूछे लोग मेरे चेहरे का
​इसलिए रोज आईना बदल रहा हूं मैं

​मेरे साथ है लाखों चेहरे कई
​फिर भी तनहा अकेला चल रहा हूं मैं ꫰

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25 DEC 2021 AT 23:16

उन्हे हटाया जाय जो फटी दस्तार वाले है
उन्हे अपनाया जाए जो महंगी कार वाले है

फक्त लफ्ज़ जो कड़े ज़हर की जात के है
धोके के नही है ये ईमानदार वाले है

खुशनसीब है जो महफ़िल के गुलिस्ता है
हमारा क्या है हम तो आखरी कतार वाले है

तजुर्बे के आखरी पड़ाव पर मिले शक्स
इनाम दो इन्हे ये बेशकीमती किरदार वाले है

वो किस जात के थे जो दोस्ती बनाके गए
उन्हे धुडिए मुर्शद वो खुदा के अवतार वाले है

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12 AUG 2021 AT 22:27

रोना पड़ता है हर शख्स को बचपन की किलकारीयों के बाद
कलाकार होता तो क्या होता अगर तोहमते हैं
वफादारियो के बाद
मैं लौट कर आजाता हु घर को हर दफा बेबसी और लाचारियो के बाद
जिंदा हू किस तरह से ताज्जुब हे हजार किस्म की बीमारियों के बाद ।

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1 APR 2021 AT 23:46

सारे जवाब है मेरे पास पर कोई सवाल नहीं किया
एक जाहिल को छीन कर खुदा ने तुम्हें कंगाल नहीं किया

बदनाम भी हो गए है दुनिया के सामने
बदनाम हो के भी हमने कोई मलाल नहीं किया

मैं दो कौड़ी का काबिल क्या होता तुम्हारे
इसीलिए तुमने अपनों से बवाल नही किया

पैरोल पर ही था मैं कुछ वक्त दुनिया में
तुमने भी मुझे इस सजा से बहाल नहीं किया

हम तो बरसों से अकेले थे और रहेंगे
तुमने हमे छोड़कर कोई कमाल नहीं किया

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1 APR 2021 AT 1:30

जिम्मेदारी तेरी नौकरी करते करते थक गया हूं यार
अब रोना है मुझे खुद के लिए फुर्सत से !

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27 MAR 2021 AT 23:10

घर तन्हाई से भर गया और हम भीड़ मैं खोते ही रह जाएंगे
जख्म गीले हैं काबीज मेरे हम उनको सुखाते ही रह जाएंगे

बेशकीमती हीरो के हार सी जिंदगी है तुम्हारी
उसमें हम मोती पिरोएंगे तो पिरोते ही रह जाएंगे

मेरे हंसने के जरिए अगर जाना है छोड़ क तुझे
तो कोई ना यार हम रोते हैं रोते ही रह जाएंगे

खुली आंखों के सपने लगते है महज वो पल तेरे
और उन्हें अब देखने सोएंगे तो सोते ही रह जाएंगे

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17 MAR 2021 AT 22:34

अनजान मुझे सारा शहर लगता है
जाहा तू रहे मुझे वही मेरा घर लगता है
जिस दिन तू मुझसे किसी बात से रुकसत रहे
वो सारा दिन मुझे खुदा का कहर लगता है
एक मुद्दत से ठीक से सोई नहीं है मेरी मां
एक बार कहा था मेने की मुझे डर लगता है

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