आ चल खुद के खिलाफ़ एक जंग छेड़ते हैं,
दूसरों की नहीं खुद की खामियों से लड़ते हैं।
कौन क्या कर रहा है इन सब से निकलते हैं,
अपने अंदर चल खुद की कमियों से मिलते हैं।
अंधकार है जो अंदर अपने उस गली में चलते हैं,
अज्ञानता की निंदा कर उसे पैरों से मसलते हैं।
तू बड़ा, मैं बड़ा इस भ्रम से चल फिर अड़ते हैं,
आ चल खुद के खिलाफ़ एक जंग छेड़ते हैं।
दूसरों की बुराईयों से पीएचडी करने की बजाय,
खुद की ही अच्छाईयों से ही ग्रेजुएशन करते हैं।
चल इस दुनिया की चकाचौंध से निकलते हैं,
बुराईयों को छोड़ अच्छाईयों की सैर करते हैं।
ईर्ष्या,क्रोध,झूठ इन सब को किनारे रखते हैं,
प्रेम,धैर्य, सच का चल फिर से दामन पकड़ते हैं।
आ चल खुद के खिलाफ़ एक जंग छेड़ते हैं,
दूसरों की नहीं खुद कि कमियों से लड़ते हैं।
छल-कपट,दिखावा से एक कदम आगे बढ़ते हैं,
सरलता,सहजता की ओर चल फिर निकलते हैं।
आ इस दुनिया को अच्छी यादें देकर चलते हैं,
कड़वाहट को पैरों से ही मिटाते हुए निकलते हैं।
चल खुद से ये वादा कर उसी पर आगे बढ़ते हैं,
तू भी चल,मैं भी चलता हुँ इन सब से लड़ते हैं।
आ चल खुद के खिलाफ़ एक जंग छेड़ते हैं,
दूसरों की नहीं खुद की कमियों से लड़ते हैं।
- दीपक "अदीब"
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