क्यूं हैं उदासी मन में इतनी भारी क्या हैं जो अधूरा सा रह गया हलचल हो रही हैं ख्याल के समुंदर में खुद के होने पर आज यकीन कम सा लगता हैं। क्या है इस मन में जो इतना खाली खाली सा लगता हैं।
क्यूं आज कोई, अपना नजर नहीं आता सन्नाटा है बाहर या है मेरे अंदर सन्नाटा तार मेरे सितारों के, अब सारे है टूट चुके न जाने सुर रागो से, कब के है छूट चुके जरा हौले गीत वहीं दोहराना तुम हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
दौड़ रहा हूं, इक अजीब सी ख्वाइश लिए। डर है कही, ठोकर खाकर गिर न जाऊं। फिर भी इक होंसला बुलंद लिए बढ़ता हूं। मजा तो तब आएगा दौड़ने का,जब खुद मंजिल भी छोटी दिखने लगे, मेरे दृढ़ निश्चय के आगे।