ग़ज़ल:
2122 2122 212
तुम गुनाहों में घिरे हो किसलिये?
इस कदर वहशी हुए हो किसलिये?
बुझ गये दीपक सभी तो क्या हुआ,
ये बताओ तुम बुझे हो किसलिये?
पेड़ जिसकी छाँव में बैठे थे तुम,
अब उसी को काटते हो किसलिये?
गाँव का आँगन तुम्हें भाता नहीं,
तुम जड़ों से कट चुके हो किसलिये?
ज़ुर्म सहना तो बड़ा अपराध है,
तुम इसे फिर सह रहे हो किसलिये?
इक नदी की ही तरह बहते थे तुम,
आज बोलो रुक गये हो किसलिये?
दीपक पंडित
9179413444
24/10/2019
- दीपक पंडित
24 OCT 2019 AT 17:46