Deepak Pandit   (दीपक पंडित)
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Joined 13 January 2019


Joined 13 January 2019
13 SEP 2022 AT 11:11

कैसा निज़ाम है तेरा, कैसा सुलूक है,
जिसने भी सर उठाया, वही शख़्स गुम हुआ।

दीपक पंडित

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13 AUG 2022 AT 10:20

मैं मयक़दे की राह पर चलता रहा सदा,
कुछ लोग धर्म-ओ-जात के झगड़ों में खो गये।

दीपक पंडित

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11 AUG 2022 AT 22:22

सभी रिश्तों से बेहतर है हमारे प्यार का रिश्ता,
कभी लेता नहीं कुछ भी, ये बस देता ही देता है।

दीपक पंडित

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30 JUL 2022 AT 19:07

आप तोड़ें या मरोड़ें या उसे दफ़्ना भी दें,
सच सदा सच ही रहेगा चाहे कुछ भी कीजिये।

दीपक पंडित

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6 JUL 2022 AT 14:15

तुमने कानों में क्या कह दिया,
ये दीवारें भी हँसने लगीं।
ज़ुल्फ़ की जब घटा छा गयी,
बारिशें ख़ुद बरसने लगीं।

दीपक पंडित

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19 JUN 2022 AT 15:28

ढाई आखर प्रेम के, बोल गुनेगा कौन।
दोहों के दरबार में, खड़ा कबीरा मौन।।

दीपक पंडित

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9 JUN 2022 AT 19:12

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल को जगा के बैठ गये,
हम तेरा ग़म सजा के बैठ गये।

जब भी हम दास्ताँ सुनाने लगे,
दोस्त सब पास आ के बैठ गये।

वस्ल का वक़्त जब करीब आया,
वो बहुत दूर जा के बैठ गये।

पत्थरों का मिज़ाज जब बिगड़ा,
आइने चोट खा के बैठ गये।

जब कभी सच हुआ उजागर तो,
लोग चेहरा छुपा के बैठ गये।

बात जब भी चली 'करप्शन' की,
लोग सब तमतमा के बैठ गये।

दीपक पंडित
9179413444
09/06/2022

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7 JUN 2022 AT 7:42

ख़बर बस वो नहीं होती जो अख़बारों में छपती है,
ख़बर वो भी हुआ करती है जो हर बार दबती है।

दीपक पंडित

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24 MAY 2022 AT 13:45

ग़ज़ल

हमने ख़ुद को शहर बना डाला,
दिल को इक रहगुज़र बना डाला।

एक ताँता रहा हमेशा ही,
ज़िन्दगी को सफ़र बना डाला।

हुस्न ने वो मिसाल पैदा की,
आइने को नज़र बना डाला।

लोग पढ़ते रहे हमें हरदम,
हमने ख़ुद को ख़बर बना डाला।

हमने एहसास-ए-दर्द डाल दिया,
पत्थरों को जिगर बना डाला।

दोस्त कुछ इस क़दर ख़िलाफ़ हुए,
रास्ता पुरख़तर बना डाला।

दीपक पंडित
9179413444
24/05/2022


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18 MAY 2022 AT 21:40

ग़ज़ल

ये कैसी ज़िन्दगी है,
बहुत उलझी हुई है।

अजब हैं खेल इसके,
अजब सी यह सदी है।

लगी जो आग दिल में,
भला वो कब बुझी है?

जो बहती थी हमेशा,
वो अब सूखी नदी है।

लगाता आग पानी,
जलाती चाँदनी है।

सियासत तुम न करना,
सियासत शय बुरी है।

ख़ुशी कहते हैं जिसको,
कहीं पर को गयी है।

दीपक पंडित
9179413444
18/05/2022

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