चाहत का मेरी मुझे कोई हिसाब नहीं, पर तेरा मुझसे यूं दूर हो जाना अब कहीं ये मन उन चाहतों से हिसाब मांगता है,हिसाब मांगता है !.........
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तुमने तुम्हारी खुशियों को पाया, पर तुम्हें देखकर हमने ने भी कहीं !...............
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वो कहते थे तुम उम्मीद रखना,
पर उन्हें बताएं कैसे कि उम्मीद
ही हमारी कहीं तुम थे
उम्मीद ही कहीं तुम थे !........-
तू कभी खुद से मुझे मिलने आना, इंतज़ार में बैठे पहले हम ही मिलेंगे !............
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इंतज़ार में कहीं खुद को खोए बैठे हैं, इन बेसब्र उम्मीदों में तुम्हें संजोए बैठे हैं, उम्मीदों में कहीं संजोए बैठे हैं !...…....
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You are not fighting over the thoughts, but perhaps between them.....
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तूझे पाना कहीं ना मेरे बस में था,तूझे खोना कहीं ना मेरे हक़ में था, हां शाय़द ये सब कहीं मेरी क़िस्मत में लिखा एक किस्सा सा था,
एक किस्सा सा था,एक किस्सा था ।........-
कुछ यादें शाय़द तुम्हारे लिए अब कहीं अतीत बन गई हों, पर हमारे लिए तो आज भी वो यादें जैसे कल हुई मुलाकातों सी हैं, कल हुई बातों सी हैं।......
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मेरा तूझे कहीं हार जाना बेहतर है, मन में रही उस कसक से जिसे "कोशिश" कहते हैं !......
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