नजरें रोज़ाना घंटों ढूंढती रहती हैं तुम्हें कहीं इन हथेलियों पर खींची लकीरों में, पर नज़रों का थक कर कहीं रुक जाना ही उन्हें क़िस्मत में लिखी सच्चाई से रूबरू करवाता है, रूबरू करवाता है सच्चाई से, सच्चाई से!.......
उम्मीदें अगर खुद के सपनों से हों तो बेहतर है, क्योंकि कहीं खो जाने पर, कहीं खुद को ना पाने पर, अक्सर ये सपने ही तो तुमको अपनाते हैं दोस्त, दोस्त!.......