DEEPAK KUSHWAHA   (दीपक कुशवाहा)
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Founder-" POEM PLANET OFFICIAL"
And Politicians
Joined 19 October 2019


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27 NOV 2022 AT 8:48

घर के ऊपर घर बने हैं,
एक दूसरे से अनजान हैं l
चलो दिखाते है शहर,
जिसका बहुत बखान है।।

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30 JUL 2022 AT 12:09

फिर से मुझे भड़काव मत,
बुझते चिंगारी को जलाव मत।
जगा अगर हैवानियत,
तो सब कुछ भस्म कर जाऊंगा ।
तुम जहा भी रहो दुनिया मे
तुझे खत्म करके ही सुकून पाऊंगा।।

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13 APR 2022 AT 14:39

लगता है अभी जीवन जीना बाकी है।
जब एहसास होगा खत्म
आँख मेरा होगा उसी दिन बंद। ।

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12 APR 2022 AT 10:31

वे मुझे इन्सानियत सीखा रहे थे
और खुद एक असहाय को सता रहे थे।
मैंने देखा उसे भूख से तड़पते हुए
वे थे कि उसे भूख से मरने के तरीक़े बता रहे थे। ।

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11 APR 2022 AT 9:16

ख़्वाब से आँखों का रिश्ता
सदियों पुराना हैं ।
ख्वाबों का काम तो सिर्फ़ आना और जाना हैं ।।

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11 APR 2022 AT 8:47

तुमसे बात नहीं करनी
फिर कभी मुलाकात नहीं करनी।
ग़र मिले किसे मोड़ पर तो,
अनजानों जैसे व्यवहार नहीं करनी। ।

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10 APR 2022 AT 9:33

थोड़ी नादानी भी ज़रूरी है,
थोड़ी शैतानी ज़रूरी है,
जीवन जीने के लिए थोड़ी परेशानी भी ज़रूरी हैं। ।

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2 MAR 2022 AT 16:28

मानव ने फिर से मानवता को शर्मसार किया है,
एक बार फिर बुद्ध के बदले युद्ध का वरन किया हैं!!

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11 JUL 2021 AT 20:01

समय का इंतजार कर रहा हूं,
समय से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर रहा हूं!
आए अब कितनी भी बधाए,
सबसे निकलने कि मार्ग तैयार कर रहा हूं!!

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18 JAN 2020 AT 14:18

जहर भी अपना हिसाब जरा अलग रखता हैं,
मरने के लिए जरा सा और जीने,
के लिए बहुत सारा पीना पड़ता है...!

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