Deepak Joshi  
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Author, Weirdo, Solitude Seeker, Avid Reader, Foodie, Travel Enthusiast
Joined 4 April 2017


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15 SEP 2020 AT 20:12

कौन कहता "गुजरा” जो वो भूल जाता है,
आँखों से दूर जो दिल से भी उतर जाता है।

माना "चलना” कायदा सफ़र ए जिंदगी का,
मगर वक़्त भी निशानियाँ तो छोड़ जाता है।

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13 SEP 2020 AT 19:32

शिखर पर आदमी सबसे ज्यादा अकेला होता है।

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30 DEC 2019 AT 9:34

शैलेश लोढ़ा की एक कविता जो हर वर्ष के अंतिम दिन ज़रूर याद आती हैं मुझे -

वो कल भी भूखा सोया था फुटपाथ में
अचानक खूब पटाखे चले रात में
झूमते चिल्लाते नाचते लोगों को देखा तो हर्षाया
पास बैठी ठिठुरती मां के पास आया
बता न माई क्या हुआ है क्या बात है
मां बोली बेटा आज साल की आखरी रात है
कल नया साल आएगा
बेटा बोला मां क्या होता है नया साल
अरे सो जा मेरे लाल
मैं भीख मांगती हूँ तू हर रोज़ रोता है
साल क्या हम जैसों की ज़िन्दगी में कुछ भी नया नहीं होता है

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16 NOV 2019 AT 23:33

दिन जब चलते चलते थक जाता है,
रात को ओढ़कर सो जाता है।

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14 APR 2019 AT 20:05

उसे अजीज है मेरी बेरुखी भी ।
वो शख़्स मुझे चाहता बहुत है ।।

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6 APR 2019 AT 14:35

प्यार कैंसर की तरह होता हैं, बिन बुलाए आ जाता हैं और मार के चला जाता हैं.

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25 MAR 2019 AT 8:58

जानते हो प्रेम कुछ और नहीं अंतहीन त्रासदियों का दौर है. जो कभी नहीं गुजरता, और हम उस से गुजर कर भी कहीं नहीं पहुँच पाते.

बगैर प्रेम के हम शायद सम्पूर्णता को समझ न पायें. मगर ये भी तय है उसके बाद जो खालीपन होगा वो भी कभी भर न पायेगा.

प्रेम वो है जो हमें निचोड़ लेगा और जो उसके बाद बचेगा वो हम नहीं होंगे.

फिर हमें प्रतीक्षा होगी एक दूसरे के मिलन की, ताकि मुक्त हो सके इस निर्जीव शरीर से, क्यूँकि प्रेम का विदा होना मतलब आत्मा का विदा होना.

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23 MAR 2019 AT 22:51

दिन भर की भागमभाग,
शाम को एक आह में सिमट कर रह गयी।

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22 MAR 2019 AT 21:25

जीते हुए कभी-कभी गहरा अचम्भा होता है इतनी दूर कैसे चले आए? मैं ख़ुद से पूछता हूँ और एक लंबे समय तक अपने चेहरे को आईने में निहारता हूँ. क्या यह वही मैं था, जो हूँ. धुंध हो चुके चेहरे पर समय के रेशे आ चिपके हैं कुछ रौशनी में डूबा वो उदास जान पड़ता हैं. मैं बचपन से पूछता हूँ इतनी दूर साथ क्यों नहीं चले आए साथ? वो कोई आवाज नहीं करता. मैं हवा से कहता हूँ लौटा लो मुझे फिर, वो छू कर गुज़र जाती हैं. हर ओर सफेद धुँआ हैं, मैं आकाश को देखता हूँ सिर्फ वहीं, वहीं हैं जिसमें मेरी रूह बची हैं.

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21 MAR 2019 AT 21:59

रंग बदलती इस दुनिया में,
मुझे बेरंग होना पसन्द हैं.

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