Deepak Goyal Poetry...   (Deepak V Goyal)
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I can convert the feelings into words
मोहब्बत की तलाश यहां ख़त्म होती है!
Joined 9 January 2019


I can convert the feelings into words
मोहब्बत की तलाश यहां ख़त्म होती है!
Joined 9 January 2019

कांटे साथ रहते है
ख्यालों की बारात में
सन्नाटे साथ रहते है
महबूब और दोस्त में
बस ये फ़र्क मानो कि
पुतले बिक जाते है
पर सांचे साथ रहते है
धोखे इतने खाएं है
ख़ुद पर ऐतबार मुश्किल
तो शतरंज किसी का हो
मेरे पासे साथ रहते है

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दिल से तुम निकलो
ज़रूरत से हम निकलते है....
तुम निकलना वहां से
जहां से खुशियां गुज़रती है
मैं निकलूंगा वहां से
जहां से ग़म निकलते है....
लड़कों को तुम कपड़ों की तरह बदलती हो
कोई समझदार बच निकले हाथ मालती हो
सोच समझकर बेवफ़ाई किया करो तुम
इस बेवफ़ाई से न जाने कितने दम निकलते है

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17 AUG AT 3:44

ये मत भूलना भूल गया मैं , बेशक हो गए ज़माने
दीवारों पर लिखे है सारे, वो दिए हुए तेरे ताने
दिल किराए का समझा था, जो लगा पुराना बदल लिया
लड़ लिया मैं वक्त से अपने, देख नसीबा बदल लिया
तू खड़ी है वही, खड़ी थी तू जहां पे पहले
आज बिछा ले पत्ते दूंगा हर नहले पे दहले
मेरे तोहफ़े देकर तूने औरों से दिल बहलाया था
कट गया इसका पूरी गली में देवदास कहलाया था
उड़ गया यौवन, ढल गई जवानी कोई नहीं है राहों में
जिसके लिए मुझको छोड़ा था वो भी किसी की बाहों में
कैसे कैसे काटी रातें तेरे दिए हुए गहरे सदमों में
बता कौन सी चीज़ मैं रख दूं, मिनटों में तेरे कदमों में
तेरा शुक्रिया जो तेरी वजह से ध्यान गया तरक्की पे
तू बता कितने पीस गए आटा तेरी चक्की पे
उस वक्त मेरी बर्बादी थी पर आज तेरी बर्बादी है
जिस तारीख को बिछड़े थे उस तारीख को मेरी शादी है
तोहफ़े में बस मेरी चिट्ठियां मुझको लौटा देना तुम
मेरी बला से फ़िर तुम जानो सबको मौका देना तुम

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17 AUG AT 3:20

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17 AUG AT 2:47

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17 AUG AT 2:12

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17 AUG AT 1:47

दूर हो तो क्या हुआ
खिड़की से मैंने चांद देखा
खिड़की से तुम भी चांद देखो
अब हम दोनों चांद देख रहे है
तुम मेरे साथ हो
मैं तुम्हारे साथ हूं

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16 AUG AT 2:59

बाहर निकलो घर से, कलियों को खिल जाने दो
तुम मिलो न मिलो, नज़रें तो मिल जाने दो
खोलकर बालों को सुलझा लो तुम खिड़की पर
एक नशा सा इन हवाओं में आज घुल मिल जाने दो

काजल की धारी से संभली आंखें देख लू
थोड़ा उधर देख लो, मैं भी तुमको देख लू

उंगलियों से अटका दो तुम जुल्फों को कानो पर
एक बिजली सी टूट पड़े, अरे हम नौजवानों पर

बरसात में यार जब छत पर निकलता होगा
मालूम है ये ख़ुदा भी हाथ मसलता होगा

कि वापस लाऊं कैसे लम्हा जो हाथों से गुज़र गया
ये चांद यहां पर है टंगा , तो कौन ज़मीं पर उतर गया

16/08/2025 02:53 am (Part-1)

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बहारों को अलविदा कह चुका हूं
बारी तुम्हारी है अब जलने की
मैं ये हिज़्र, ये तपन सह चुका हूं
मेरे लौटने का इंतज़ार मत करना
तेरे शहर नदी में मैं बह चुका हूं
जिस कमरे में अंधेरा दिखता है तुमको
मैं सालों साल उसी में रह चुका हूं
कभी तेरे होने से मैं चट्टान सा मज़बूत था
आज तेरे होने से मैं रेत सा ढह चुका हूं

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आएगा सबर काम, चन्दरोज़ा जुनून है
मैं ख्वाहिशों का क़ातिल, मेरे सर पे खून है
ए मौत तुझे क्या पता ज़िंदगी के सितम का
होंठो से जितना खींच ले, वो ही सुकून है

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