Deepak Goyal Poetry...   (Deepak V Goyal)
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I can convert the feelings into words
मोहब्बत की तलाश यहां ख़त्म होती है!
Joined 9 January 2019


I can convert the feelings into words
मोहब्बत की तलाश यहां ख़त्म होती है!
Joined 9 January 2019
2 JUL AT 14:24

जब तक जागती है आंखें चांद देखते हैं
फ़िर ख़्वाब में तुम्हे हम ए-जान देखते है
तुम नहीं होती तो तुम्हारी गली में जाकर
वो खिड़की देखते है, वो मकान देखते है

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2 JUL AT 13:08

मोहब्बत का होगा असर धीरे धीरे
देखोगे तुम मेरा हशर धीरे धीरे
तेरे हिज़्र से मुझे मौत मिलेगी जां
फैली है शहर में ख़बर धीरे धीरे
तुम मिलो तो जी उठूंगा मैं फ़िर से
मिला दो अधर से अधर धीरे धीरे
एक साथ धड़कनें बढ़ जाती है मेरी
मिलाया करो अपनी नज़र धीरे धीरे
इजाज़त है तुम मुझसे वा-बस्ता हो
बढ़ना इस तरफ़ मगर धीरे धीरे
तुम आओ तो सावन के झूले डले
हो रहे है मायूस सारे शजर धीरे धीरे

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2 JUL AT 12:42

देखोगे तुम मेरा हशर धीरे धीरे
तेरे हिज़्र से मुझे मौत मिलेगी जां
फैली है शहर में ख़बर धीरे धीरे

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2 JUL AT 12:23

कभी मुझे आँख भर कर तो देख
तू मेरे ज़ेहन में उतर कर तो देख
ठहर जाएगा भुला कर मंज़िल अपनी
कभी मेरे अंदर से गुज़र कर तो देख
तुझे गुमान है ग़र तेरी अना पर तो सुन
ले मेरा हाथ पकड़ और मुकर कर देख

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23 JUN AT 20:19

देख कुछ गलत मैं कर न जाऊं तेरे बग़ैर
ज़िंदा हूं अभी, मैं मर न जाऊं तेरे बग़ैर
मैं एक मोती हूं जब तक तेरे संग बंधा हूं
टूट कर टुकड़ों में बिखर न जाऊं तेरे बग़ैर
तू साथ होगी तो मोहब्बत मोहब्बत सी लगेगी
डर है मैं हद से गुज़र न जाऊं तेरे बग़ैर
आएगी मौत तो मैं हंसके सामना कर लूंगा
डर ये है कि कहीं डर न जाऊं तेरे बग़ैर

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19 JUN AT 18:22

एक बार को सोचता हूं,
लिख दूं कहानी हमारी
हमारे बाद हमको सोचेगा कौन?
फ़िर सोचता हूं,
जाने दूं कहानी हमारी
पढ़ कर रोया तो आंसू पोछेगा कौन?
नस्ल आशिकों की अब ख़राब हो चुकी है
महबूब से अच्छी तो अब शराब हो चुकी है
फ़िक्र है कैसे जिंदा रहेंगे हिज़्र के किस्से
तड़प कर इश्क़ में दीवारें नोचेगा कौन?

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18 JUN AT 13:06

कोई उम्मीद, कोई हिदायत नहीं है
तेरे दर्द का हर कर्ज़ चुका हूं मैं
अब कोई बाकी तेरी इनायत नहीं है

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17 JUN AT 12:53

परिंदों में अब वो परवाज़ नहीं है
उड़ान भर रहे है पर लिहाज़ नहीं है
करते है लोग इश्क़ आज भी छुप कर
पहले सी लज़्ज़त वो मिजाज़ नहीं है
जाने कैसे इश्क़ कर के भी ज़िंदा है
मेरे हिसाब से इश्क़ का इलाज़ नहीं है
आए दिन बदल जाते है दिलदार दिल के
एक जगह ठहरने का अब रिवाज़ नहीं है
देख कर इन को आँखें बाद कर लेता हूं
कैसे करु आलम बयां अल्फ़ाज़ नहीं है

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16 JUN AT 14:20

हम घर के बड़े है, जगे रहते है

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12 JUN AT 20:12

आज़ादी वो है कि जब चाहूं तुम्हे पुकार लूं
कुछ पल को सही चांद ज़मीं पर उतार लूं

एक ही तो आदत है हर सूं तुझे देखने की
और तुम कहते हो इस आदत को सुधार लूं

सिर्फ़ एक वादा कर दो कि तुम आओगी
इश्क़ ऐसा कि इंतजार में उम्र गुजार दूं

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