मुझे तेरी वफ़ा का इंत-जार रहा ना मिल पाई
दिया था आस का पानी
कली फिर भी ना खिल पाई-
कभी बेफ़िक्र थे रहते अपने हाल में
फंसा लेती है जिंदगी अपने जाल में
लगता है! पत्थर हो गया, अक्स मेरा
फर्क नहीं पड़ता क्या गुज़रे साल में
हर नए क़दम की आस निराश की
क्या छुपाके लाई थी अपने शाल में-
कि गर्दिश भी आ जाए सवेरा मिट नहीं सकता
चाहत हो जो पाने की बसेरा बिक नहीं सकता
उड़ाने फिर भी होगी अर्श में अठखेलियां होगी
तुम सूरज हो रातों के अंधेरा टिक नहीं सकता-
है सुकून और ठहराव बाहों में तुम्हारी
हम भी आना चाहते हैं बाहों में तुम्हारी
यूं तो मंजिल अकेले भी मिल जाएगी तुम्हें
क्या हर्ज है अगर चलें हम राहों में तुम्हारी
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रास्ते मिलते जाते हैं जिन्हें चलना आता हो
जो डूबना चाहते हैं वो गहराई नहीं देखते
आग को बुझाने वाले भी होते हैं कुछ लोग
हाथ तक जल जाते हैं वो गरमाई नहीं सेंकते
जो सलीके जानता हो कैसे अपना बनाना है
उसकी कद्र करते हैं वो रहनुमाई नहीं फेंकते-
नहीं सोचा अभी तक दिल क्या सोचता है
जीवन चल रहा अभी कोई कहां रोकता है
कुछ वक्त पर कुछ बेवक्त गुज़रा है मेरा
आगे ही चलता रहा पीछे नहीं लौटता है
दिये को ढूंढते देखा है अंधेरे में हाथों को
क्या मतलब इसका इतना कौन सोचता है
अभी जेब खाली रखी है मैंने ईमान की
ज़िंदा ज़मीर खुद को बार-बार टोकता है
दीपक ख़ुद को रंगों में बेरंग मत समझना
कैसा भी उतार लो जीवन में कौन रोकता है-
वक़्त का सितम तो देखो
वो पीता है भर के प्याले में
ज्यादा हो तो मुसीबत
घट जाए तो मुसीबत
वक़्त की तरकीब है शिवाले में
वो पीता है भर के प्याले में........
अंधेरों से भी होता है ख़फ़ा
मैंने, देखा है उसे कईं दफा
वो दीये भी रखता है उजाले में
पीता है भर के प्याले में........
वफ़ा की कीमत भी लगाता है
हर किसी को कहां रास आता है!
सब कुछ रखता है अपने पाले में
वो पीता है भर के प्याले में........-
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बहुत कोशिश की मनाने की
मैंने परवाह न की जमाने की
हम प्यार की इल्तिजा करते रहे
उसे लत थी पैसा कमाने की
एक अरसे बाद मिला मुझे
किसी अनजान महफिल में
हिम्मत न हुई उसकी
आंख से आंख मिलाने की
°°°°°°°मीशु°°°°°°°-