खुशनसीब हैं वे जिनके खतों का ज़वाब डाकिया ले आता है,
वरना हमारे तो एक ख़त का ही ज़वाब नहीं आया दूसरा कैसे भेजते!
ये भी नहीं पता कि उन्होंने ख़त नहीं भेजा या हमारे डाकिए की गुस्ताख़ी है।-
मौसम अफ़वाहों की जब थोड़ी ठंडी हो तो
चार लोगों की जनता उसे सर्द बताती है,
गज़ब की जालसाज़ी में पड़ी है दुनिया
दिल्लगी को इश्क़ और इश्क़ को दर्द बताती है।-
वह भी एक वादा है जिसे आप वादा मानते हैं
वह सच, सच ही होगा, आप हमसे ज्यादा जानते हैं,
और एक दिन मिलना तो होगा ही इस बात से खुश हूं मैं
तो क्या हुआ गर मैं नहीं पहचानता, आप तो मुझे अच्छे से पहचानते हैं।-
शहर कभी खास तो कभी आम लगता है
यहां रहने वालों का हर रोज़ हुज़ूम तमाम लगता है,
कभी नवाब कुछ खास तो कभी आम लोगों की भरमार बहुत है
बस ऐसे ही नहीं ये शहर लखनऊ का नायाब हर शाम लगता है।-
हद्द है आपकी आंखों का
कि मुंह फेर रहे हैं हमसे, नजाने कैसे मानेंगे?
और ज़माने को कैसे पता होगा हमारे मोहब्बत का पता?
आप बताओ तब तो जानेंगे।-
ये तुझसे जो जुड़ाव है मेरा वो इश्क़ है, चाहत है, या कि मेरी जरूरत कोई;
बस ये जानने में ही पूरी ज़िन्दगी लगा दी मैंने।-
बुरा हो कुछ तो सहू मैं
कागज़ के पंख बुनूं, उडूं मैं!
हो चाहे तो दम तोड दूं ऐसे ही
हो चाहे तो मंज़िल छू लू मैं।-
रह रहकर बात ज़ुबान पर आ ही जाती है,
भूलकर कभी जिसे तुम आगे बढ़े थे।-
कुछ अपने दिमाग तो कुछ दिल के यार होते हैं
हर उम्र में एक हद तक सब होशियार होते हैं,
और ये जुल्फ़ें, बड़ी-बड़ी आंखें, ये अदाएं तो सब बहकावा है
मोहब्बत तो आज भी अच्छी शख्सियत वालों के हकदार होते हैं।-
मैं जानता हूं;
मैं जानता हूं कि हर चीज़ से तुम थक चुके हो,
थक चुके हो हर उस चीज़ से जो या तो
दिखावे की हैं, या फिर पूरी नहीं होतीं।
मैं जानता हूं तुम ऊब चुके हो,
ऊब चुके हो हर उन बातों से जो अनायास ही
बिना सोचे-समझे तुमसे कह दी जाती हैं।
मैं जानता हूं तुम परेशान हो,
परेशान हो लोगों से जो कभी साथ देते हैं
तो कभी एकदम से नज़रंदाज़ कर देते हैं।
मैं जानता हूं कि तुम रोते हो,
रोते हो जब कभी ख़ुद को अकेला पाते हो,
वो भी किसी और के लिए नहीं, ख़ुद के लिए।
मैं जानता हूं तुम घुट रहे हो,
घुट रहे हो अपनी शख्सियत के लिए,
अपनी शख्सियत, जिसको ढूंढने
और पाने की जद्दोजहद में तुम लगे हुए हो।
मैं जानता हूं कि तुम तड़प रहे हो,
तड़प रहे हो ख़ुद को काफ़ी बनाने के लिए,
अपने लिए, अपना सरोकार, अपने तक करने के लिए।
और मैं यह भी जानता हूं कि ऐसा करके भी तुम ऐसे चलने नहीं दोगे,
चलने नहीं दोगे तुम्हारी दरिंदगी किसी पर भी
क्योंकि तुम वो बिलकुल भी नहीं हो जो तुम बनना चाहते हो।
और ताज्जुब है!
ताज्जुब है कि इतना सबकुछ तुम्हारे बारे में मैं कैसे जानता हूं?
जानता हूं क्योंकि इन सबसे मैं गुज़र चुका हूं बहुत पहले जिससे तुम आज गुज़र रहे हो।-