पीठ पर वजन लादे कुछ नयन सूख चुके थे उसके
लकड़ी सा शरीर पर वजन था दोगुना उससे
हाथ पर छाले पर हार ना मानी थी उसने
कदम अंधकार में थे अभी, भविष्य उजाले पर टिके थे
खुदके सपनों को टूटते बिखरते देखा था
ख्वाब ने मगर एक नया राह बुन लिया था उसमें
अपने बच्चे के साथ एक नयी उम्मीद जगी थी
उसके सपने को अपना मान लिया था उसने
मेहनत अब और भी कड़ी करने लगा था
उस बच्चे को आसमान जो लाना था ॥
- @दीपक बिष्ट