लोग समंदर और पहाड़ों में खुद को ढूंढने निकलते हैं। मगर जवाबों के लिए वापस घर लौटना ही पड़ता है।
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Deepak Bisht
(@दीपक बिष्ट)
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कुछ बातें दिल और दिमाग की कशमकश में अधूरी रह गई हैं चाहता हू्ँ किसी रोज कयामत के आखिरी दि... read more
Joined 17 January 2018
3 JUL 2022 AT 11:23
6 FEB 2022 AT 11:28
हमने उन्हें भी देखा जो मुस्कराते बहुत थे
इश्क ने उन्हें भी रोने के बहाने दिए ॥-
6 FEB 2022 AT 11:19
मत पूछ मुझे मैंने कितना चाहा था उसे
धोखा खाया, दिल टूटा, शर्मिंदा भी हुआ
फिर अपना भूल बैठा दर्द जब उसने आह भरी ॥
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6 FEB 2022 AT 3:56
हमने लिखा उसका नाम कापी के गत्ते पर
बहुत चूमा फिर शर्माकर जिल्द चढ़ा दिया ॥
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1 JAN 2022 AT 3:27
जब भी छुड़ाना चाहा मोहब्बत से अपना वास्ता
याद तेरी सीने से, कस के बाहें, लिपट गई ॥-
20 SEP 2021 AT 4:59
रात फिर लौट आई है बेआबरू
चाँद फिर खिसया रहा हालातों पर
ख्वाबों का कब्रगाह हो गया है सिरहाना
देह ताबूत, नींद कफन हो गई जज़बातों पर ॥-
20 MAR 2021 AT 4:31
चेहरा तो बिक गया मगर जहन संभाल रखा है
सपना भी लुट रहा है मगर वहम संभाल रखा है।
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4 JAN 2021 AT 15:17
हम सब के अंदर कहीं ना कहीं छुपा एक समंदर या कोई पहाड़ है। जो शहरों की दिन भर की भाग दौड़ के बीच हर रोज शाम ढलते ही याद आने लगता है।
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