Deepak Bhardwaj   (दीपक भारद्वाज "वांगडु")
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अज्ञात
Joined 16 April 2018


अज्ञात
Joined 16 April 2018
26 JUN 2020 AT 18:39

ऐ मेरे हमसफ़र!
यह याद रखना तुम

जीवन के हर डगर में
सदा साथ रहना तुम
सुख हो या दुःख हो
हमेशा पास रहना तुम
मन में हो ग़र शिकवा
या कोई भी नाराजगी
मेरे सामने सदा ही
बात, बेबाक रखना तुम
जिंदगी के इम्तिहान का
मिलकर करेंगे सामना
जो कभी कमजोर पडूं
तुम हाथ मेरा थामना
अपनी सारी खुशियां
मैंने नाम तुम्हारे कर दिया
मेरे खुशियों के जहां को
अब आबाद रखना तुम
कभी हो कोई ऊंच-नीच तो
घरवालों की बातें सह लेना
मन में ग़र कड़वाहट आये
मुझसे बेशक कह लेना
मात-पिता तो बच्चों की
चाहें हैं सदा भलाई ही
भला उनसे क्या नाराज़गी
जुबां पे प्यार ही रखना तुम

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22 JUN 2020 AT 19:56

कुछ बातें हैं दरमियाँ, पर कहूं कैसे
तुम बिन मन ही नही लगता, रहूं कैसे
आँखों में तुम्हारी तश्वीर सदा बसती है
इसलिए आंसू भी कहते हैं , बहूं कैसे।

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22 JUN 2020 AT 11:46

अपनी इच्छाओं की हत्या करना भी
आत्महत्या से कम नहीं है।
बस फ़र्क इतना है कि
यह पीड़ा आप जीते जी भोगते हैं
और यह किसी को पता भी नही चलता!

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20 JUN 2020 AT 7:59

लो मान लिया न नशीब था
हम दोनों सदा ही साथ रहें
पर मिला के काहे अलग किया
और कहा दोनों बर्बाद रहें
कैसी ये खुदाई है तेरी
जो दोनों को ही रुला रही
तेरे हाथों की ये मेंहदी
मौत की तारीख बता रही।

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20 JUN 2020 AT 7:57

मेरे हाथों में हाथ तेरा
सदा ही जचता था
न छूटे ये कयामत तक
हर धड़कन कहता था
लगता है कयामत आ गया
घड़ी की सुइयां दिखा रही
तेरे हाथों की ये मेहंदी
मौत की तारीख बता रही।

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20 JUN 2020 AT 7:55

भूले बिसरे रह गए
रह गई बनके कहानी
वो साथ बचपन वाला
ले गई छीन के जवानी
देख तुम्हारी तश्वीरों को
मोतियां आंखें बहा रही
तेरे हाथों की ये मेहंदी
मौत की तारीख बता रही।

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20 JUN 2020 AT 7:53

तेरे हाथों की ये मेहंदी
मौत की तारीख बता रही
याद न जाए इक पल को
ये रह रह कर सता रही
तेरे हाथों की ये मेहंदी
मौत की तारीख बता रही।

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18 JUN 2020 AT 16:26

क्या तुम्हें जरा सा भी एहसास नही होता
तुम्हारा मन कभी यादों में उदास नही होता
नही पूछता ग़र बता दिए होते जो मजबूरी
आख़िर किस वजह से आई थी हम में दूरी
ये सवाल आज भी सताते हैं
किससे कहूं कि रुलाते हैं
अब जिंदगी भी धीरे-धीरे घबराने लगी है
मुझे तुम्हारी याद फिर आने लगी है!!!

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18 JUN 2020 AT 11:21

ऐसे में भला कहां, मुनासिब है ठहर पाना
पल पल तरसना और एकाएक डर जाना
इसलिए चल निकला, खुद की ही तलाश में
यादों की गठरी बांधकर, तन्हाई के साथ में
अब तो वहीं ठहरूंगा
कुछ बातें भी कह लूंगा
वो जहां जो मिलने की उम्मीद जगाने लगी है
हां, मुझे तुम्हारी याद फिर आने लगी है!!!

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18 JUN 2020 AT 11:12

ये बारिशों की बूंदें, ये शीतल लहर
कदम मेरे रोकते, कहतें जरा ठहर
इतना ख़ुशनुमा मौसम कहां पायेगा
कहतें छोड़ कर जन्नत कहां जाएगा
अब कौन इन्हें समझाए
और क्या क्या बतलाए
कि ये चीजें जो मुसलसल दोहराने लगी है
मुझे तुम्हारी याद, फिर आने लगी है!!!

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