Deepak Bhardwaj   (दीपक भारद्वाज "वांगडु")
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अज्ञात
Joined 16 April 2018


अज्ञात
Joined 16 April 2018
18 JUN 2022 AT 18:50

बचपन से दर्द में जी रहा
सुकून मुझे इकबार न था
हाथों की लकीरों में भी
शायद! सच्चा प्यार न था
मंदिर-मस्जिद गिरिजाघर
सब जगह में मत्थे टेक आया
सब जगह ख़ुदा से यह पूछा
क्या नशीब में मेरे यार न था
अंत में मैंने खुद से ही
जब इसी सवाल को दोहराया
तब मेरा अंतर्मन मुझसे बोला
वांगडु...
बस तेरे पास रोज़गार न था।

~ वांगडु

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18 JUN 2022 AT 18:05

मन की सारी पीड़ा
और थकान सांसे लेने की
सबकुछ छूमंतर हो जाता है

जब तुम एकबार
मुझे निहार लेती हो!


नाकामयाबी भरे हर दिन
तानें सुन सुन पकते कानों में
मधुर गीत बजने लगता है

जब तुम एकबार
मुझे पुकार लेती हो!!

फिर...

बस और दो चार दिन
फिर मैं ब्याह दी जाऊंगा
किसी सरकारी बाबू के
घर आंगन को सजाऊंगी
तब तुम अपना ख़्याल रखना

जब जब ऐसे बोलकर
खुद ही आंसू बहाती हो
कसम से मुझे
जीते जी मार देती हो!!!

~ वांगडु

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3 MAR 2022 AT 15:55

दिल का मैं नादान था
इश्क के खेल से अंजान था
बस इतनी सी ख़ता थी मेरी
और साथ हमारा छूट गया

न जमीन - ज़ायदाद
न ही बड़ा सा मकान था
घर चलाने के वास्ते, बस
इक छोटा सा दुकान था
बस इतनी सी ख़ता थी मेरी
और साथ हमारा छूट गया

कहीं उसे घुमा लाता
पसंद की चीजें दिलवा पाता
पर मैं ठहरा सायकल सवार
न मेरे पास मोटरकार था
बस इतनी सी ख़ता थी मेरी
और साथ हमारा छूट गया

उससे प्यार बेशुमार था
दिल में उसका ही सरकार था
पर, इससे फ़र्क नही पड़ा
क्यूंकि मैं जो बेरोज़गार था
बस इतनी सी ख़ता थी मेरी
और साथ हमारा छूट गया।

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13 NOV 2021 AT 12:05

तोड़ लाऊं चांद तारे
सब बेवजह की बाते हैं
तुम साथ रहो, बस पास रहो
आओ जमीं पे स्वर्ग सजाते हैं

हाथ थामकर जहां घुमा दूं
झूठा करूँ न ऐसा वादा मैं
तुम पलभर भी जो साथ रहो
हम यहीं संसार को पाते हैं

भूख प्यास नींद चैन है गायब
ऐसा भी नही कह सकता मैं
पर, ज़िंदगी की प्राथमिकता में
तुमको पहले पायदान पे लाते हैं

हां, शादी-वादी, बच्चे-वच्चे
उनके नाम भी हैं सोंच लिए
ये बात तो बिल्कुल सच्ची है
बेशक क्षणभर की मुलाक़ातें हैं!
~ वांगडु

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15 FEB 2021 AT 20:23

घर चलाने घर से निकला
अब घर ही खो चुका हूँ
अनजान शहर में आकर
यहीं का हो चुका हूँ
बेशक बहुत है भीड़ यहां
फिर भी सब सुना लगता है
अब क्या बताऊँ माँ
याद में कितनी बार रो चुका हूँ।

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22 JUL 2020 AT 17:32

आज भी है इंतज़ार तुम्हारा
हां, वही स्कूल वाले मोड़पर
बस थोड़ी ही देर में आती हूँ
यह कहकर गए थे छोड़कर

कहते हैं पहला प्यार
नही भूलता कोई लाख भुलाने से
पर तुम तो भूल चुके
या मन भर चुका रिश्ता निभाने से
क्या थी मेरी गलती
कम से कम एकबार तो कहा होता
न रहता मैं दुविधा में
न इतना अंजान दर्द कभी सहा होता
आज भी तुम संग बीते सारे पल
संजोए रखा हूँ ख़्वाब में जोड़कर

बरसों बीत गए न
पर आज भी कदम ठहरते हैं
जब कभी अचानक
उस राह से एकाएक गुजरते हैं
आस तो नही रखते
कि शायद कोई चमत्कार हो
पर उम्मीद तो रहता है
जहां पे शिद्दत वाली प्यार हो
कॉश तुम वापस आ जाते
सारे रश्म-रिवाज तोड़कर

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10 JUL 2020 AT 11:02

जिनकी झूठी बातें भी झूठी न लगे
उनसे इज़हार जरूरी है क्या
जिनकी बुरी बातें भी बुरी न लगे
उनसे इक़रार जरूरी है क्या
दोस्ती, अपनापन सबकुछ सहीं है
फिर ये प्यार का बुखार, जरूरी है क्या।

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30 JUN 2020 AT 6:57

खुद को खुद के अंदर ही
सर्च कीजिए
अपने कर्माें पर भी
कभी-कभी रिसर्च कीजिए।

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29 JUN 2020 AT 11:01

कुछ चीजें इसलिए भी संजोए रखता हूँ
ताकि यदि मैं न रहूँ, तो भी सबके साथ रहूँ!

जैसे तश्वीरें तो सबके पास होगी
फ़ेसबुक से कविता निकाल लेंगे
ट्विटर पे मेरी शायरियां पढ़कर
यूट्यूब पे वीडियो को झांक लेंगे

और कुछ भी तो मुझमें बात नही
जिस वजह से सब याद करेंगे
ढंग से तो किसी से मिला भी नही
जो कभी मिलने की फरियाद करेंगे।

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27 JUN 2020 AT 20:38

जिंदादिली जिंदा रखिये
बेशकीमती रिश्तों के बीच
इतने खुदगर्ज मत बनिये
की वे एकांत में खो जाए
बेमतलब की बातें सहीं
पर आपस में करते रहिए
बांटते रहिये सदा सुनापन
कहीं हो शांत न हो जाएं
छोटी छोटी बातें अक्सर
दिल में घाव कर जाती है
मलाल नही खयाल रखें
की कोई सुशांत न हो जाए।

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