जंगल में खड़े
उस सबसे पुराने वृक्ष ने कहा
मैंने अपनों को मरते देखा है
जंगलों को ज़मींदोज़ होते देखा
देखा है इंसान कितना बेरहम है
पर दिखता कितना नरम है..!
उस बुढ़े वृक्ष ने कहा
अब वो मेरे कितने नजदीक आ गये
अब काट देंगे मुझे भी
उखाड़ फेंकेंगे मेरी जड़ों को
मेरी टहनियों को भी नहीं बख्शा जायेगा
मुझे टुकड़ों में बांट दिया जायेगा
शायद कल यहां मेरा एक पत्ता भी नजर नहीं आयेगा!
उसने कहा
आज मैं जा रहा हूं
कल किसी और की बारी आयेगी
उसकी भी ज़िंदगी चंद मिनटों में मिट जायेगी
ऐसे ही जंगल का एक-एक वृक्ष मारा जायेगा
यहां कोई नहीं जो हमें बचाने आयेगा...!
गिरती शाखाओं ने कहां
कल जब धरती का अंतिम वृक्ष कट जायेगा
तब बगैर हमारे इंसान भी कहां जी पायेगा
सूरज आग बरसायेगा
और इंसान भी तड़प तड़प कर मर जायेगा..!
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सब कुछ पीछे छूटकर रह जाएगा
आज यहां हैं तो कल कहीं और होंगे
जी भर कर जियो इन पलों को
कल शायद यूं आपसे मिलना न हो पायेगा।
ये सफर किसे कहां तक ले जायेगा
कल तो हम जिंदगी के उलझनों में उलझे होंगे
फिर क्यों बर्बाद करें इन लम्हों को
ऐसा वक्त यकीनन फिर लौटकर नहीं आयेगा।
हर एक मोती को माला में पिरोया जायेगा
उस अमूल्य माला की मोतियां हम सब होंगे
कोई विखंडित न कर पायेगा उस माला को
ये वक्त जीवन भर याद आयेगा।
हर एक खुद को आपमें अपनापन पायेगा
वो किसी ना किसी मोड़ पर तो यकीनन टकरायेगा
न जाने कौन कब जिंदगी के किस पहलू में काम आयेगा
जीवन तो बस उतार चढ़ाव में ही खत्म हो जाएगा।-
विश्वास
मन रूपी वृक्ष की
वह डाली है
जिसके टूटने से
उससे जुड़े पल्लव रूपी रिश्ते
स्वतः मर जाते हैं......।-
तुम शांत संयमित समंदर हो
तुम धीर गंभीर उतंग हो।
तुम निर्मल नदियां की नीर हो
तुम शीतल बहती समीर हो ।
तुम हो एक नव अंकुरित मंजरी
और हो एक अविरल तरंगिणी ।
तुम हो सांद्र एक मुमाखी सा
चमक तुम में उस मार्तण्ड सा।
गर ऐसा कोई अपने सफर पर होगा
ख़ुदा को उसके मरातिब का खबर तो होगा।
ख़ुदा नवाजेंगे तुमको मंजिल से तुम्हारे
उस रोज हर एक मंज़र मोहक होगा।-
जब तुम हार जाओगे
जब तुम ठोकरें खाओगे
जब तुम टूट जाओगे
जब तुम आंसू बहाओगे
तब जमाना क्या कहेगा?
जो भी कहेगा तुम्हारे खिलाफ ही कहेगा!
पर तुम जमाने की परवाह न करना
अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ते रहना
तुम रुकना मत
किसी के सामने झुकना मत
गिर जाओगे तो उठ खड़े होना
टूटने लगोगे तो खुद को संभालना
लड़ना ,खुद की कमजोरियों से
और उन्हें अपनी ताकत बनाकर आगे बढ़ते रहना
तब तक
जब तक तुम्हें तुम्हारी मंजिल ना मिल जाए!-
मौत क्या है?
मौत, मौत अंत है
हर एक जीव का
जो जन्मा है!
मौत निश्चित है
पर कारण हर एक की मृत्यु का अलग है
कोई डर डर के मरा है
कोई लड के मरा है
कोई नाम कर के मरा है
कोई बैमौत मरा है !
मौत तो तय है
फिर इससे क्या भय है
तो जब मौत आयेगी
बेशक इस शरीर को तड़पायेगी
बूंद बूंद पानी को भी तरसायेगी
हमें डरायेगी और रूह तक को दहलायेगी
हमारे अपनों को रुलायेगी !
हम चाह कर भी न बच पायेंगे
बस एक याद बनकर रह जायेंगे!
बस कुछ ऐसा बेहतर काम करके जाना
जिसके लिए तुम्हें ज़माने तक याद रखें ये जमाना।-
उम्र के इस पड़ाव पर
वज़ह होकर भी
किसी से उलझना
बेवजह सा लगता है!-