बजती बाँसुरी धीरे-धीरे, ढोल धीरे-धीरे बजता नहीं,
सबका निज है स्वभाव, जो दूसरे पर सजता नहीं।-
खिलता जाता हूँ, सब से मिलता जाता हूँ,
कालचक्र के वर्तुल में, फिसलता जाता हूँ।
जीवन में अवसरों का, एक सागर पाता हूँ,
हर जन्म में श्वेत सी, नयी चादर पाता हूँ।
कभी-कभी निज घर से, निज घर आता हूँ,
गर कहीं जाता हूँ, तो वापिस भी आता हूँ।
हर क्षण, क्षणभंगुर संसार से, निभाता हूँ,
इस पार रहकर, उस पार से निभाता हूँ।-
लोगों के भीतर लाखों कहानियाँ हैं,
और चेहरे तो बस कोरे काग़ज़ से।
बाहर से सभी लगते ठहराव वाले,
और अंदर उफनते क्षुब्ध सागर से।
बहुत लोगों से मिलकर समझकर,
अनेक कहानियाँ पढ़ी हैं सुनी हैं।
लेकिन आख़िर यही समझ आया,
इन लोगों ने यह अंदर ही बुनी हैं।-
संसार में क्या शक्ति संतुलित है?
चींटी और हाथी में क्या संतुलन,
शेर और हिरण में क्या संतुलन,
प्रकृति और विज्ञान में क्या संतुलन।
बाहरी तौर पर शक्ति ज़्यादा-कम है,
लेकिन यही तो हरपल जीवन है।
जन्म के समय तो सभी दुर्बल,
मृत्य के समय भी सभी निर्बल।
फिर भी जीवनभर शक्ति सभी चाहते,
तन की, मन की, धन की, सत्ता की।
वैसे इसे पाने में कुछ बुरा भी नहीं है,
पर लालच से बड़ा कोई छुरा ही नहीं है,
जो बिगाड़ देता है यह सारा संतुलन!!!-
बहुत गुमनाम रहा मन, कोई इसको पहचानता नहीं,
औरों से क्या शिकायत, मैं भी इसको जानता नहीं।
पुलिंदे बांधता ख़यालात के, हसीन और बेहतरीन,
इतनी हैरत होती इसपर, मैं भी इसको मानता नहीं।-
आजकल सबको रफ़्तार पसंद है,
कोई धीमा नहीं रहना चाहता।
आजकल सबको टेढ़ापन पसंद है,
कोई सीधा नहीं रहना चाहता,
आजकल सबको कड़वा पसंद है,
कोई मीठा नहीं रहना चाहता।
आजकल सबको चमकीला पसंद है,
कोई फीका नहीं रहना चाहता।-
सभी एक गहरा कुआँ हैं, मीठे पानी से लबालब,
मिट्टी-धूल, मिलावट, स्वभाव छुपाएगी कब तक।-
सिलवटें कपड़ों पर, मेहनत की निशानी है,
सिलवटें माथे पर, तजुर्बे की कहानी है।
सिलवटें मन पर, ज़िंदगी की परेशानी है,
सिलवटें किस्मत पर, वक़्त की मनमानी है।-
रंगों का मारा इंसान, स्लेटी राख बन जाएगा,
यौवन का सारा अभिमान, ख़ाक बन जाएगा।
फिर किस राह से गुज़रेगा, कहाँ ठौर पाएगा,
नीचे को दबाता है, फिर कहाँ ज़ोर लगाएगा।
स्लेटी राख बनकर शरीर, गंगा में बह जाएगा,
सारे गुरूर, घमंड को, फिर सागर में पाएगा।
यह रंगीन छलावे सा संसार, याद न आएगा,
इंद्रधनुष के यह रंग, फिर किसको दिखाएगा।-
बीते हुए दिनों में छिपा, आज का बीज है,
और किस से कहूँ, यह आज क्या चीज़ है।
बीते कल, और आने वाले कल, के बीच है,
बीते कल की कोशिशों में, आज की जीत है।-