Deepak Ahuja   (Deepak Ahuja)
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Joined 5 February 2020


Joined 5 February 2020
6 HOURS AGO

यह भी संभावना है,
कि किसी में संवेदना न हो,
ज़रूरी नहीं हर इंसान एक हो।
लेकिन भाव रहित होकर भी,
इतनी संभावना ज़रूर हो,
कि वो कुछ नेक हो।

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12 HOURS AGO

शरीक है इस जहान में, जाने कौन-कौन,
कोई सच बताता, कोई रहता मौन-मौन।

न बेहतर की उम्मीद है, अपना ही भला,
कोई सुकून दिलाता, तो कोई ज़लज़ला।

न मिलने की समझ, न समझ का वक़्त,
कोई नर्म दिल शख़्स, कोई रहे सख़्त।

शरीक है सब जहान में, दूर हो या पास,
कोई बनता दोस्त, कोई बन जाए ख़ास।

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18 JUN AT 15:33

यह कहानी बूँदों की है, यह कहानी पानी की है,
ठहरे का यहाँ क्या मोल, क़ीमत रवानी की है।

पहाड़ बहुत विशाल सही, पानी राह बनाती है,
निर्मल अस्तित्व की, एक गहन चाह जगाती है।

तरल अविरल बहता, पानी कल-कल बहता है,
सरल सकल रहता, पानी निश्छल रहता है।

बूँदें जब टपकती हैं, कहानी कविता बनती है,
पानी जब स्त्रोत छोड़ता है, तो सरिता बनती है।

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18 JUN AT 6:19

जागना नियती है सबकी, तो सोना क्या है,
खाली हाथ आए जगत में, तो खोना क्या है।

सारा धन-पैसा कंकड़-मिट्टी, तो सोना क्या है,
जब जाग ही जाएँगे, तो स्वप्न सलोना क्या है।

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17 JUN AT 17:41

ज़िंदगी तेरी बज़्म में दिन-रात सुब्ह-शाम,
उम्र बीतती थोड़ा हँसते थोड़ा रोते तमाम।

फ़कीर, अमीर, ग़रीब सब बन रहे आम,
मैख़ाने-मैख़ाने पीते थके मुसाफ़िर जाम।

शायद होगा सफ़र शानदार कौन जानता,
हर कहानी का अंत तेरा अक्स जानता।

ज़िंदगी तेरी बज़्म से हर शख़्स का नाता,
उम्र की चलती चक्की से वो पिसे जाता।

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16 JUN AT 23:55

क्या-कुछ करता घमंड में इंसान,
रहता न बेपरवाह ठंड में इंसान।

सोचे उसका किया अनदेखा है,
किसने यहाँपर कल देखा है।

क्या-कुछ करे मतलब में इंसान,
रहता न आज-अब में इंसान।

सोचता वो अविजित ही रहेगा,
पर काल का दरिया ही बहेगा।

क्या-कुछ करता सोचता इंसान,
ताक़त में रिश्ते खोजता इंसान।

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16 JUN AT 20:19

अब मैं कविता लिखूँगा, कुछ ऐसी लिखूँगा,
न पहुँचाए ज़रा सुकून, कुछ वैसी लिखूँगा।

थोड़ी कटु, थोड़ी कटाक्ष, थोड़ी कड़वी सी,
बहुत हुई जी-हुज़ूरी, लिखनी है लड़ती सी।

अब मैं कहानी लिखूँगा, कुछ ऐसी लिखूँगा,
न होगी मिठास भरी, कुछ वैसी लिखूँगा।

थोड़ी तीखी, थोड़ी कसैली, थोड़ी बेस्वाद,
बहुत लिखी बहती नदी, लिखनी है आग।

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16 JUN AT 16:52

इस बरस का आधा होने वाला है,
मन का शोर ज़्यादा होने वाला है।

देखो छह महीने बीतने वाले हैं,
सभी हारने सभी जीतने वाले हैं।

चौबीस हफ़्ते भी ख़त्म हो गए हैं,
कितने पुराने जश्न भी खो गए हैं।

इस बरस का आधा होने वाला है,
अब कुछ तो ज़्यादा होने वाला है।

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15 JUN AT 14:27

और इसलिए सब अकेले रहते हैं,
साथ में दुनिया के झमेले रहते हैं,
मतलबी चमचे और चेले रहते हैं।

और इसलिए यहाँ सब परेशान हैं,
साथ में ज़ालिम के यह जहान है,
मासूम के ऊपर न कोई महान है।

और इसलिए तो सब चुपचाप हैं,
पुण्य की आड़ में कितना पाप है,
बगलों के अंदर रहते साँप हैं।

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13 JUN AT 16:42

मंज़िल न चाहता न चाहता सफ़र,
क्या फ़ायदा सुकून न मिले अगर।

मंज़िल के दीवाने रहते तड़पते,
सफ़र के मुसाफ़िर रहते भटकते।

मंज़िल मिलकर भी मिलती नहीं,
सफ़र की ख़ुशी भी खिलती नहीं।

मंज़िल की राह में खड़ा ये संसार,
सफ़र का मतलब हुआ व्यापार।

मंज़िल न प्यारी न प्यारा ये सफ़र,
मुझे तो प्यारा वो मील का पत्थर।

मंज़िल और सफ़र से है बेपरवाह,
पड़ा है सुकून से धूप हो या छाँव।

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