मैं मौसम हूं पतझड़ का, मुझमें बहार कहां से आई
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
खुशियों में थे जो साथ मेरे, गम में ना दिखी उनकी परछाई,
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
सबने पकड़ी, सबने छोड़ी मेरी ये कलाई,
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
दुख में सब भूल गए, फिर याद तुम्हें क्यों आईं
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
जीने की चाहत खो चुका मैं, फिर तुमने क्यों उम्मीद जगाई
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
करते हैं उपहास सभी अब, फिर तुमने क्यों प्रीत लगाई
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
मैं खुश था, खुश थी पाकर मुझको ये तन्हाई
हर कोई करता है नफरत,तुम यार कहां से आई
छाई थी दुख की घटाएं, सुख की ये बौछार कहां से आई
हर कोई करता है नफरत, तुम यार कहां से आई
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