याद है वो 10 Aug. 2015 की तारीख
जब पापा ने सपनों के पिछे दौड़ाया था।
मुझे खुद School bag देकर,
पापा ने अपने हाथों से भारी Box का बोझ उठाया था।
मां के हाथों में Documents और bucket की भार थी।
घर परिवार से दूर जाने की वो ऐसी घड़ी थी।
नानी, दादी और मां के आंसू भी फीके पड़ गए थे।
ऐसे जैसे घर से बेटी विदा होती है जैसे!
सपनों और अरमानों का सैलाब लिए, नवोदय की दूरी तय करनी थी।
एक परिवार से दूर हुई थी, दूजा नवोदय परिवार से मिली थी।
कुछ दूर चलके उनके साथ ही, अपने सपनों को भुलाया थी।
नवोदय की उस रंगीन चंबल बस्ती में खुद के अरमानों पर पानी फीराई थी।
दोस्ती यारी की मौज मस्ती में पापा से Test Marks छुपाई थी।
एक Bad moment ने मुझे blanket के अंदर पूरी रात रुलाया था।
यह एक Bad moment ने मेरे Strength से मुझे मिलाया था।
अगले सुबह जब class गईं तो सारे उम्मीदों को Sir ने जगाया था।
फिर से हौसला बुलंद करके अपना कदम आगे बढ़ाई थी।
सब कुछ को फिर से भुलाकर खुद के सपनों के पीछे लगना था।
~Deepa Varun (JNV Mrj)
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