Deepa Mishra   (मौसम)
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Joined 27 February 2019


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5 MAR 2020 AT 22:22

गुलाम किसी इंसान से नही
मुझे इश्क़ मेरे टशन से है
और ये जिस्मो का खेल आप ही खेलिए
मुझे मोहब्बत तो बस मेरे वतन से है

मैं एक शाम तन्हा बैठी थी
अपनी ही सोच में ऐंठी थी
वो शख्स जो गुजरा आम सा था
कपड़े उतने भी खास नही बस रटता नाम कलाम का था
कुछ उलझी थी मैं अपने सोच मैं ही
और कुछ सोचना बाकी था
गुजरा वही शक्स फिर से
पर इस बार लवों पे कलाम और बदन पे खाकी था
वो हाथ हिलाते चल दिया और आँखे भी भर आयी थी
मोहब्बत की कीमत असल मे उसी ने चुकाई थी
वो 2 साल की बच्ची थी जिसने अलविदा बोला था
कितना सोचु उस शक़्स को मैं
जिसने अपने अरमानो को तोला था
सबकुछ छोड़ के अपना खुद को वतन को सौप दिया

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2 MAR 2020 AT 19:47

पिछले साल का रंग इस बार व गालो पे सजाना है

तेरे यादों के संग इस बार भी होली मनाना है

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20 FEB 2020 AT 10:58

ज़िन्दगी के सफर मे ये हम क्या कर रहे हैं



इतना तो जीया भी नही होगा किसी ने,
जितना हम मर रहे है....!

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16 JAN 2020 AT 11:20


मोहब्बत थी मैं उसकी, मेरी याद तो आएगी....!

एक अरसे से मैंने उसे देखा नही
महसूस तो किया है पर छुआ नही
चाहती थी आखिरी सांस तक साथ रहे उसका
कोशिस की पर हुआ नही
कुछ तो बात थी उसमें
यही सोच ना जाने कबतक मुझे जलायेगी
मोहब्बत थी मैं उसकी, मेरी याद तो आएगी.....!
भरोशा उठ गया प्यार से पर टूटा नही
निकाल दिया है ज़िन्दगी से उसने पर मोह छूटा नही
याद वो भी करता होगा मुझे या नही, नही जानती
पर उसकी यादें ना जाने कबतक मुझे रुलायेगी
मोहब्बत थी मैं उसकी, मेरी याद तो आएगी......!!
जिस्मानी खेल नही खेला हमने, दिल तक ही रेह गए
कुछ खट्टी-मीठी यादें थी उसी के सहारे रेह गए
यकीन है हमें वो यादें कुछ तो रंग लाएगी
मेरी महसुसीयत उसकी भी तोते उड़ाएगी
मोहब्बत थी मैं उसकी, मेरी याद तो आएगी.....!!!
अपनी नादानियों से खोया मैंने उसे
उसे बेवजह चाहने की आदत थी
उसका मेरे साथ रहना ही काफी था शायद
पर उसे चाहना मेरी इबादत थी
मेरा इश्क़ था परिंदा जैसा
किसी 'मौसम' मे तो उड़के उसके पास जाएगी
मोहब्बत थी मैं उसकी कभी तो उसकी याद आएगी.....

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9 JAN 2020 AT 18:30

खुबसूरती को थोड़ा और बढ़ा देती है
जब वो अपने सर पे लाल बिंदी सजा लेती है

एक तो उसके चेहरे का नूर चाँद जैसा
और ये लाल बिंदी उसके माथे पे तारो की तरह टिमटिमा रही है

केहती है की प्यार नही मुझसे
और मेरे नाम का बिंदी अपने माथे पे सजा रही है

उस लाल रंग को स्वाभिमान समझती है अपना
देखो वो अपने स्वाभिमान का शोभा बढ़ा रही है

अभी उसके आँखों के काजल से नही उभरा में
की वो लाल बिंदी से मुझे मदहोश बना रही है

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7 DEC 2019 AT 16:20

इंसान कामयाब होकर जितना ऊपर जाता है
उसका इन्सानियत हार मानकर उतना नीचे गिर जाता है,



कामयाबी और इंसानियत मे ये उतार-चढ़ाव तो नही थे....!

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28 NOV 2019 AT 9:43

मीलो का सफर एक पल मे बर्बाद हो गया

जब अपनो ने पूछा,
कहो कैसे आना हुआ...

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27 NOV 2019 AT 14:29

समंदर सा था उसका इश्क़
ना जाने कितनों ने उस से दिल लगाया है
मै कैसे बह जाऊ उसके मोहब्बत मे
मेरी माँ ने मुझे तेल की तरह तैरना सिखाया है

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22 NOV 2019 AT 8:16

सूट सलवार पे बिंदी पसंद हैं

हमे अंग्रेज़ी से ज्यादा हिंदी पसंद हैं

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14 NOV 2019 AT 9:52

होंठो पे हँसी
दिल मे बेबसी


चलो अच्छी ख़ासी चल रही ज़िंदगी अपनी भी

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