Deep Thoughts   (Saziya)
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Joined 3 January 2021


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3 APR AT 10:11

रेज़ा रेज़ा बिखर रहा है ज़ईफ़ लहजा ,
कि बेख़बर हैं सुकून-ए-क़ल्ब से इस कदर,
दे दे तेरी ख़ास सआदत ऐ मेरे रब,
कि मिल जाये बस तू ही तू हर तरफ़ !

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11 MAR AT 12:40

और सारी उम्र यूंही गुजार कर ग़फ़लत-शि'आरी में,
तकदीर को देते रहे अफ़सुर्दगी का इल्ज़ाम हर दफ़ा!

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5 MAR AT 12:56

Kaise banau mai duniya ke mutabik duniyavi lahza
Mai Raabte rakhta hu bas us rab-e-qaainat se jise
duniya ki rangeeniyo me gum log hargiz azeez nahi.

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28 DEC 2023 AT 16:34

ये मिला वो गया कुछ मिलते मिलते रह गया,
जिसे सब मिला वो भी कह रहा,
मैं अधूरा यहाँ हूं जी रहा,
कैसा निज़ाम हर तरफ़ ये क्या सब चल रहा,
उलझनों की क़ैद में हर शख्स यहां पल रहा,

हैं ने'मतें हज़ार भी,
और शिकवे बेशुमार भी,
सब बेख़बर हर उस लम्हें से,
जो बग़ैर मुसीबत के गुज़र गया,

था कभी वो हाल भी, भूख थी और प्यास भी,
ना था निवाला हाथ में, और दिल से शुक्रगुज़ार भी,
ना थी दुनिया की रंगीनियाँ,
ना था बेसुकूनी का हाल भी,

चला गया वो ज़माना अब,
जहां थे नफ़रतों से बेगाने सब,
अब जो गफलतों में है जी रहे,
क्या होगी उनकी निजात भी,

ये क़ीमती लम्हें ना आयेंगे फ़िर,
किसे ख़बर ये वक्त मुसलसल गुज़र रहा,
कैसा निज़ाम हर तरफ़ ये क्या सब चल रहा,
उलझनों की क़ैद में हर शख्स यहां पल रहा,

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15 DEC 2023 AT 16:50

ना हो सकें जो पूरे वो ख्वाब भूल जाना,
हैं जो तुम्हें मयस्सर वो ने'मत याद रखना!

जो ख्यालों में हों उलझे तुम रहनुमाई करना,
बस ग़म को भूल जाना तुम अज्र याद रखना!

हर एक की यहां पर तुम तल्खी भूल जाना,
बढ़ते हों जिनसे ताल्लुक वो बातें याद रखना!

ख़ुश हैं जो अब ये चेहरे तुम उसको भूल जाना,
वहाँ थे कभी जो आँसू वो आँसू याद रखना!

हैं अब दिखावे दुनिया की चाहत भूल जाना,
मिले हैं जो ख़ुदा से वो फ़र्ज़ याद रखना!

ना हो सकें जो पूरे वो ख्वाब भूल जाना,
हैं जो तुम्हें मयस्सर वो ने'मत याद रखना!

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26 JUL 2023 AT 14:41

और फिर समझदारी की इन्तहा कुछ यूं हुई कि,
कोई दुःख भी दे तो, मुझे मज़बूरी नजर आती है!

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8 JUL 2023 AT 23:06

Madness is better than a clever mind.

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3 JUN 2023 AT 10:36

वक़्त   फ़रामोश सा   मग़र इक सम्त    मो'तबर होगी,
इक यही एतबार है मुझे.  कि  तवक़्क़ो की फ़ज्र होगी,

कि  ताख़ीर का दिया  भी जलेगा  ज़रूर   आहिस्ता से,
अब्र-ए-मसा'इब हटेगा राहत-ए-आग़ाज़-ए-सहेर होगी,

सुकून-ए-क़ल्ब    हैं   या   हैं  इज़्तिराब  में    मशग़ूल,
कि सबको  ख़ुद अमाल की   ख़ुद बा ख़ुद ख़बर होगी,

बे-अदब   से लहजे हैं कहीं   तो कहीं  वफ़ा के गुलाब,
ये हवा   नफ़्सा-नफ़्सी की   यकीनन  दर-ब-दर होगी,

कि  आयेंगे  निखर के  आफ़ताब‌‌‌‌-ए-तुलू  की  मानिंद,
लम्हा-ब-लम्हा   सैकड़ों   दुआएं  भी तो  असर होंगी,

तदबीर क्या है  आबशार की   अकीदत से  गिरता है,
उस आबशार पर भी तो रब-ए-रहमत-ए-नज़र होगी!

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4 JAN 2023 AT 12:40

ग़म करे भी तो क्यूँ लोगों की तल्ख ज़ुबानी का,
आखिर_ ये दुनिया भी फानी है और इंसान भी !

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2 JAN 2023 AT 18:02

ना_ मजीद सादगी किरदारों में है,
ये बनावटी रवैये भी अन्दाजों में है,

मलाल, नफ़रतें बरकरार है दिलों में,
वही हसरतें, नफ़्सा-नफ़्सी इंसानों में है,

लम्हा-दर-लम्हा इक रोज़ थम ही जाएगा,
बेख़ौफ़ गुजरता वक्त बड़ी उफानों में है,

कि इक क़तरा तो हो वफादारों के हिस्से में,
ये दुनिया मग़र झूठे_फरेबो के हाथों में हैं!

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