ये मिला वो गया कुछ मिलते मिलते रह गया,
जिसे सब मिला वो भी कह रहा,
मैं अधूरा यहाँ हूं जी रहा,
कैसा निज़ाम हर तरफ़ ये क्या सब चल रहा,
उलझनों की क़ैद में हर शख्स यहां पल रहा,
हैं ने'मतें हज़ार भी,
और शिकवे बेशुमार भी,
सब बेख़बर हर उस लम्हें से,
जो बग़ैर मुसीबत के गुज़र गया,
था कभी वो हाल भी, भूख थी और प्यास भी,
ना था निवाला हाथ में, और दिल से शुक्रगुज़ार भी,
ना थी दुनिया की रंगीनियाँ,
ना था बेसुकूनी का हाल भी,
चला गया वो ज़माना अब,
जहां थे नफ़रतों से बेगाने सब,
अब जो गफलतों में है जी रहे,
क्या होगी उनकी निजात भी,
ये क़ीमती लम्हें ना आयेंगे फ़िर,
किसे ख़बर ये वक्त मुसलसल गुज़र रहा,
कैसा निज़ाम हर तरफ़ ये क्या सब चल रहा,
उलझनों की क़ैद में हर शख्स यहां पल रहा,
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