़़़़़़़़ प्यारा बचपन ़़़़़़़़़़
था एक सुकून सा जिंदगी में जब ना समझ था।
वो दिन ठीक से याद नहीं रहते,
पर याद सभी वो दिन ठीक से करते थे,
सपने तब भी रहते होंगे सभी के,
पर पूरा करने का डर नहीं रहता था।
कभी कंचे कभी लट्टू खिलौने कम नहीं थे,
पर बचपन के दिन काफी कम थे।
खेल मतलब का नही होता था कोई
बस खेलना जरूरी था,
आसान था जीवन तब, क्योंकि काटना नहीं
उसे जीना जरूरी था।
बेसक वक्त देखना नहीं आता था तब
पर वक्त सही रहता था,
सुकून से बैठने को रविवार का
इंतजार भी नहीं रहता था।
अब तो छुट्टी वाले दिन भी करार नहीं आता,
क्यों वो बचपन वाला रविवार नहीं आता।
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