DEEP THOUGHT   (Shailesh_verma)
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Joined 4 June 2020


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27 MAR 2022 AT 19:46

रो पडा़ ओ फ़कीर मेरे हाथ की लकीर को देख कर,
रोते हुए बोला अपनी मौत से नहीं किसी की
इंतजार में मरेगा।

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27 MAR 2022 AT 8:28

लोगों का क्या कहूँ,अब वक्त भी कुछ पूंछ रहा है।
लिखता था खुद के लिए,जो अब पीछे छूट रहा है।
जनाब मालूम नहीं था की ऐसा भी एक वक़्त आएगा,
बेवक़्त मौसमों की तरह इंसान भी अब बदल जायेगा।
वक्त बदलते देर नहीं लगती,
ये सब कुछ भुला रहा है सिखा भी रहा है।
लिखता था खुद के लिए,जो अब पीछे छूट रहा है।
लोगों का क्या कहूँ,अब वक्त भी कुछ पूंछ रहा है।

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22 FEB 2022 AT 12:04

आओ नेक नया एक काम करे हम,
मतदान करे हम,मतदान करे हम।
घर-घर साक्षरता ले जाएंगे,
मतदाता जागरूक बनाएंगे।
देश विकास में थोडा़ योगदान करे हम,
मतदान करे हम,मतदान करे हम।
घर-घर ये संदेश पहुचाये,
अपना वोट काम में लाएं।
छोड़ के सारा काम पहला काम करे हम,
मतदान करे हम,मतदान करे हम।

#election
#vote
#3 march


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22 FEB 2022 AT 11:12

़़़़़़़़ प्यारा बचपन ़़़़़़़़़़

था एक सुकून सा जिंदगी में जब ना समझ था।
वो दिन ठीक से याद नहीं रहते,
पर याद सभी वो दिन ठीक से करते थे,
सपने तब भी रहते होंगे सभी के,
पर पूरा करने का डर नहीं रहता था।
कभी कंचे कभी लट्टू खिलौने कम नहीं थे,
पर बचपन के दिन काफी कम थे।
खेल मतलब का नही होता था कोई
बस खेलना जरूरी था,
आसान था जीवन तब, क्योंकि काटना नहीं
उसे जीना जरूरी था।
बेसक वक्त देखना नहीं आता था तब
पर वक्त सही रहता था,
सुकून से बैठने को रविवार का
इंतजार भी नहीं रहता था।
अब तो छुट्टी वाले दिन भी करार नहीं आता,
क्यों वो बचपन वाला रविवार नहीं आता।

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19 FEB 2022 AT 21:05

मेरे आँकडे कभी दूसरों से ना पूछना,
समझ जाओगे मुझे अगर खुद समझोगे।
ख्याल करलो आज मेरे ख्यालों का तुम,
बाद मे मेरे लिए ही यहाँ वहाँ भटकोगे।

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31 JAN 2022 AT 8:21

क्या कहुँ हाल-ए-दिल आप से अपनी,
एक धुंधला चेहरा आँखों में बसा है ।
चाहकर भी उससे कुछ कह नहीं सकता,
ना जाने ओ हमसे युं ही ख़फा है ।
चाहती है बोलना ओ भी कुछ हमसे,
कहीं मन में कोई बात उसके दबा है ।
जब आँखें टकराई तो कुछ तो बात हुई,
लेकिन कसक सा कुछ दिल में बचा है ।
लेकिन कसक सा कुछ दिल में बचा है ।




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19 JAN 2022 AT 8:42

इतना सुंदर जीवन मिला,
दिया कई कुर्बानी ने ।
मजहब भ्रष्टचार ने अंधा कर दिया,
हमको जोश भरी जवानी में ।
क्या समझेंगे हम कीमत इस आज़ादी का,
कभी सहा नहीं है दर्द हमने गुलामी का ।
कभी सहा नहीं है दर्द हमने गुलामी का ।




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19 JAN 2022 AT 8:39

बचपन का वो भी एक दौर था,

गणतंत्र में भी खुशी का शौर था ।

ना जाने क्यू मै इतना बड़ा हो गया,

इन्सानियत में मजहबी वैर हो गया ।

ना पूछो गैरों से कि

हमारी क्या कहानी है,

बस इतनी ही है कि

हम सब हिंदुस्तानी हैं ।

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19 JAN 2022 AT 8:34

प्यारे बन्धुओं ¡
मजहब में बटना छोडो़,
ना हिन्दु बनो, ना मुस्लमान ।
रहो बुराईयों से दूर सदा,
ना बनो भ्रष्टाचार के गुलाम ।
इन्सानियत जि़ंन्दा रखो खुद में,
कुछ कर्म ऐसे करो,
बनो सुन्दर भारत के सुन्दर इंसान।

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17 JAN 2022 AT 23:11

हमारी जिंदगी में कलम भी
बड़ा एहसान करते है,
दिल का हाल जुबान न कह पाए
तो कलम बयान करते हैं ।
तभी आज फिर कलम उठा लिया,
क्योंकि उस शक्श ने अंदर से झकझोरा है ।
लिखना बहुत कुछ चाहा,
पर ये कागज का टुकडा़ अभी भी कोरा है ।


़़़़ शैलेश वर्मा ़़़

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