खामोशी
मुझे उस शोर की चाहत से ही डर लगता है
जो मेरी खामोशी कभी तोड़ता नहीं
न तो मुझे है उसकी आदत अब
और न ही उसे पाने की कोई तलब रही
कहते हैं, खामोशी में बड़ी ताकत है
पर ये ताकत मुझसे कुछ कहती नहीं
एक अजीब सी उलझन घेरे रहती है
जो सुलझ कर भी सुलझती नहीं
शायद यही है मेरी नियति का खेल
और नियति कभी रुकती नहीं!-
कुछ अदाएं जनाब की, कुछ किस्से ज़नाब के😍😍😘😘
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बस तुम्हारे लिए
मेरी हस्ती भी तेरी है, मेरी हर साँस भी तेरी,
ये जो अल्फ़ाज़ बुनता हूँ, ये हर आवाज़ भी तेरी।
तेरे बिन मैं अधूरा हूँ, तेरे बिन शब्द अधूरे हैं,
"मैं और मेरे शब्द सिर्फ तुम्हारे लिए हैं," ये सच पूरे हैं।
तुम्हीं से रंग पाते हैं, ये नग़मे, गीत, अफ़साने,
तुम्हीं को सोचते रहना, यही इस दिल के पैमाने।
मेरी हर सोच का अक्स, तुम ही हर भाव बनते हो,
मेरी हर नज़्म, हर ग़ज़ल का तुम ही तो ठाँव बनते हो।
ये साँसें जब तलक मेरी, ये धड़कन जब तलक जारी,
रहेगी प्रीत की ये रीत, तुम पर ही ज़िंदगी वारी।
मेरे हर ख्वाब की ताबीर, मेरे हर ज़िक्र में शामिल,
"मैं और मेरे शब्द सिर्फ तुम्हारे लिए हैं," ओ मेरे क़ाबिल।-
तेरे वश में
तेरी नज़रों का जादू है, या मीठी तेरी बातें हैं,
कि सुध-बुध खो के ये दिल अब, बस तुझको ही चाहता है।
समझ आता नहीं कुछ भी, न अपना होश रहता है,
"मन करता है वश में हो जाऊँ तेरे," ये हरदम कहता है।
तेरे इशारों पे चलना, तेरी हर बात सुन लेना,
इसी में क़ैद होकर भी, आज़ादी को चुन लेना।
ये कैसा इश्क़ है तेरा, ये कैसी तेरी माया है,
कि तुझमें खो के ही ख़ुद को, असल में मैंने पाया है।
न दुनिया की ख़बर कोई, न अपनी ही ज़रूरत हो,
बस इतनी सी तमन्ना है, तू ही मेरी हक़ीक़त हो।
तेरे हर हुक्म के आगे, ये सिर मेरा झुका पाए,
यही अंजाम हो मेरा, ये जीवन तुझमें मिल जाए।-
काश मुझे समझा होता, मेरी खामोशियों की ज़ुबान को,
अनकहे उन अलफ़ाज़ों को, दिल में दबे हर अरमान को।
आँखों में जो नमी छुपी थी, उसे पढ़ लिया होता कभी,
तो आज यूँ टूटकर बिखरा न होता, मेरा वजूद ये अभी।
काश मुझे समझा होता, तो भरोसा न यूँ मरता कभी,
रिश्तों की नाज़ुक डोर ये, टूटकर न यूँ बिखरती सभी।
तुम सोचते रहे कुछ और, मैं कुछ और ही कहता रहा,
दरमियाँ हमारे शायद, एक अनजाना सा फ़ासला बढ़ता रहा।
काश मुझे समझा होता, तो ज़िन्दगी यूँ वीरान न होती,
हर खुशी मुझसे यूँ रूठी, हर उम्मीद बेजान न होती।
अब तो बस यादें बाकी हैं, और एक कसक जो जाती नहीं,
काश वो पल लौट आते, पर वक़्त की ये रीत भाती नहीं।-
तुम्हीं से सबकुछ
मेरी हस्ती, मेरी साँसें, मेरा हर पल तुमसे है,
ये जो जीवन में रौनक है, वो हर इक हल तुमसे है।
लबों पर जो हँसी खिलती, वो हर इक खिल तुमसे है,
मेरा वजूद, मेरी ख़ुशियाँ, मेरा ये दिल तुमसे है।
मेरी आँखों के सब सपने, मेरी हर आस तुमसे है,
जो मुश्किल में हिम्मत दे, वो दृढ़ विश्वास तुमसे है।
अंधेरों में जो जुगनू चमके, वो उजला प्रकाश तुमसे है,
मेरी हर जीत का कारण, मेरा उल्लास तुमसे है।
मैं जो कुछ भी कह पाता हूँ, मेरे अलफ़ाज़ तुमसे हैं,
मेरी हर ग़ज़ल का जादू, मेरे हर साज़ तुमसे हैं।
तुम्हीं आगाज़ हो मेरा, तुम्हीं अंजाम लगते हो,
हाँ, मेरा सबकुछ तुमसे है, मेरे भगवान लगते हो।-
जब रात की खामोशी में, दर्द उतरता है,
शिव, तेरा हर एक नग़मा, रूह में बिखरता है।
वो कौन सी कसक थी, जो तूने पा ली थी,
कि हर साँस तेरी, बिरहा में ढाल ली थी।
तेरे लफ़्ज़ों में पिघलती, वो जवानी की आस,
मौत से भी इश्क़ करने की, अनोखी प्यास।
सूखे पत्ते, उदास राहें, गवाह तेरे ग़म के,
गीतों में आज भी ज़िंदा, वो अश्क हैं नम से।
हवा जब गाती है तेरे, उन बिछोह के गानों को,
लगता है तू यहीं है, छेड़ता है तानों को।
तेरी पीड़ा का परचम, यूं ही लहराएगा सदा,
बिरहा का सुल्तान तू, हर दिल की है सदा।-
जब भी तन्हाई घेरे, तेरे अज़कार आते हैं,
मेरे मुरझाए जीवन में, नई बहार लाते हैं।
यही वो ज़िक्र है तेरा, जो धड़कन को बढ़ाता है,
और तेरी याद का आलम, जीना हमें सिखाता है।
कभी बातों में तेरा नाम, कभी ख़ामोशियों में ध्यान,
तेरे होने के एहसास से, ये वीराना भी गुलिस्तान।
ये वो दौलत है जो मुझसे, कोई भी छीन ना पाएगा,
तेरी चाहत का ये दीपक, हमेशा झिलमिलाएगा।-
चलो संग चलें, कुछ ख़्वाब बुनें हम-तुम,
ये राह अकेली, क्यों काटें भला हम-तुम?
कभी धूप कड़ी हो, कभी छाँव हो मद्धम,
हाथों में लिये हाथ, निभाएँगे ये क़सम।
मंज़िल कहाँ है, अभी किसको है ये ख़बर,
पर साथ तुम्हारा, तो प्यारा हर एक सफ़र।
जो बोझ हो मन पर, वो हल्का हो जाएगा,
एक दूजे का संबल, हर मुश्किल हटाएगा।
न डर किसी ठोकर का, न राहों का कोई भय,
जब प्रीत की डोरी से, बंधे हों दो हृदय।
चलो संग चलें, नया आसमाँ बनाते हैं,
इस जीवन की लय में, नया गीत गाते हैं।-
एहसास और आस
प्यार क्या है? एक एहसास, जो रूह को छू जाता है,
बिन बोले ही दो दिलों में, एक दुनिया रच जाता है।
कभी धूप सा खिलखिलाता, कभी छाँव सा गहराता है,
ये वो नग़मा है जो हरदम, भीतर ही भीतर गाता है।
और मैं क्या हूँ? मेरी आस, जो हर पल साथ निभाती है,
टूटे भी तो हौले से, फिर जुड़ने की राह दिखाती है।
इसी आस के पंखों पर, सपनों की उड़ानें भरता हूँ,
मैं हूँ तो बस इस चाहत से, हर मुश्किल से मैं लड़ता हूँ।
वो एहसास गर मिल जाए, तो आस ये परवान चढ़ती है,
मेरी हर एक उम्मीद को, तेरे होने से ही जान मिलती है।
प्यार एहसास है, और मैं, उसी एहसास की इक आस हूँ,
तुम मिल जाओ तो लगे, ख़ुद अपने ही सबसे पास हूँ।-
महोबत क्या है?
बस इक एहसास जो दिल में उतर जाए,
किसी की एक नज़र से ही, ये दुनिया सँवर जाए।
कभी ये दर्द बन जाए, कभी मरहम ये कहलाए,
जो बिन बोले समझे सब, वही महोबत कहलाए।
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