कुछ वक़्त बाद मैं जो हूं वो मैं न रहूंगा
कुछ वक़्त बाद तुम, तुम न रहोगे
कुछ वक़्त बाद मेरे चेहरे पे झुर्रियां आ जाएंगी
हां कुछ और वक्त बाद तुम्हारे चेहरे पर भी आएंगी
कुछ आदतें मेरी बदलेंगी
कुछ आदतें तुम्हारी बदल जाएंगी
इस रूप निखार को मैं छोड़ दूंगा
उस रूप निखार को तुम छोड़ जाओगी
ये मेरा तन मुझे छोड़ जाएगा
वो शरीर तुम छोड़ जाओगी
तो क्यों इस देह का मुझे अभिमान हो
क्यों उस देह पर तुमको अहंकार हो
मेरी रूह तुम्हें चाहे
तुम्हारी आत्मा मुझे चाहे
क्या इस तरह का प्यार न हो-
मैं कुछ कह न सका
कितना चाहता था तुझे
कितनी मोहब्बत थी तुझसे
कितने अल्फ़ाज़ भरे थे मन में।
एक दौर तेरे बिन रह न सका
हैं बहोत वो बातें, जो मैं कह न सका।
कितना पाना चाहा तुझे
कितनी चाहत थी तुझसे
कितने जज्बात भरे थे जहन में।
तुझसे दूर रहना सह न सका।
हैं बहोत वो बातें, जो मैं कह न सका।
कितना प्यार भरा था मन में,
कुछ ख्वाब समेटे थे नयन में।
क्या हालात किये थे अपने
मलाल आज भी न जाने क्यों है
कि मै कुछ कह न सका।
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अब मैं उसको नहीं
किसी और को लिखुंगा
अब मैं उसको नहीं
किसी और को चाहूंगा
अब मैं उसके सपने नहीं
किसी और के बुनूँगा।
अब मैं वहाँ नहीं
कहीं और रूकूंगा।
एक इंसान का प्यार ना मिला
किसी और को प्यार करूँगा
उस जगह नहीं ठहर नहीं पाया
अब कहीं और रूकूंगा।
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हर शौक पूरा कर लिया, एक दौर अकेला चल दिया
तेरी तलब अब तक न मिटी, हूँ हर मानुष से मिल लिया
तू असल में है न सही, पर ख्वाब तेरा भी बुन लिया
हूँ अब भी खड़ा उन राहों में, जिन्हें छोड़ तू चल दिया
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कई दिन बीते कुछ न लिखा।।
कुछ दिन बीते दिल न दुःखा।।
बीते दिनों काफी कुछ ऐसा दिखा।
मानो जिंदगी जीने का हुनर सीखा।
कुछ चेहरों का पर्दा हटा।
कुछ चेहरों में अपनापन दिखा।
अब मिला लिखने का मौका।
जब भीगे मन का आंगन सूखा।
कई दिन बीते कुछ ना लिखा ।।
कुछ दिन बीते दिल न दुःखा।।-
मिले जो कल रास्ते में तुम, तो हैरत ही न थी।
मिले तो थे तुम उन चेहरों में, जो मिले थे मुझे राहों में।
मिले तो थे तुम बच्चों की मुस्कान में, उनकी हंसती आंखों में।
मिले तो थे तुम उस चाँद में, उसकी चमचमाती चाँदनी में
मिले तो थे तुम आज सुबह में, जागते सूरज की किरणों में।
मिले तो थे तुम हर बरसात में, उसकी टिप-टिप गिरती बूंदों में।
मिले तो थे तुम उन पंछियों में, उनकी चह-चहाती आवाज़ों में।
मिले तो थे तुम बहती हवा में, उसकी मस्त फिजाओं में
मिले तो थे तुम उन फूलों में, जो खिल-खिलाए थे बागों में।
मिले जो कल रास्ते में तुम, कोई हैरत ही न थी।
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अजीब कलाकार था
पढ़ाई का उसे क्रेज था
उसके मुख पर तेज था
छोटी उम्र में सारे काम कर गया
कुछ दिनों में अपना नाम कर गया
जिंदगी नोचते कुछ दरिंदों से वो डर गया।
डर को ना मार पाया और खुद मर गया।
देखने के लिए वो बहुत कुछ दिखा गया
सुनने के लिए वो बहुत कुछ सुना गया।
कहने के लिए वो बहुत कुछ कह गया।
उसका ग़म उसके मन में ही रह गया।
कुछ न कह पाया वो सब कुछ सह गया।
पूरा करेंगे काम उसका जो अधूरा रह गया।
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जब कभी भी मैं आधी नींद से जग जाता हूँ
तो मुझे ये महसूस होता है कि
अभी अभी मैं तुमको खोकर आया हूँ।
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