इश्क उस बला का नाम है साहब
जहां नादान से समझदार होने का
सफर तय किया जाता है-
तुम वो समुंद्र हो प्रिय
जिसके किनारे बैठ जाए
तो उठने का मन नही करता
मन करता है की पार कर जाए
ये दरिया तेर के
पर तेरे हुस्न की लहरे
बार बार डुबो देती हैं..
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तुम पुजारी मेरे
तुम देखो मुझे सुबह शाम सवेरे
मैं खिल उठू तुझे देख
सुबह शाम सवेरे
न तुम मुझे बुलो
न मैं तुम्हें बुलू
तुम जो बूलो मुझे
तो मुरझा जाए आंगन ये सारा
यह हैं नित्य कर्म मेरे प्रिय
इसे न बुल तुम मेरे प्रिय
क्योंकि मैं हूं तुलसी
तेरे आंगन (ह्रदय)की..-
कभी कभी रिश्ते बनाए रखने के लिए
वजह नही बताई जाती
वजह बताई जाती
तो अपनी यादों के संग
सब कुछ खत्म हो जाता।-
वो पूछते रहे
आप कैसे है
हमने कहा इस मौसम की तरह
वो पूछते रहे
आप कैसे हो हमारे साथ
हमने कहा इस मौसम की तरह
वो कहते रहे हमसे
कही मौसम बदल तो न जायेगा
हमने कहा उनसे
यदि आप यूंही रहे
तो मौसम कभी न बदलेगा।
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ना जाने हर कोई नकाब ओडे हैं
कहीं किसी से मोहब्बत का डर हैं
या किसी से नजरे चुराने का
क्यों न बिन नकाब रहा जाएं
हर किताब को अच्छे से समझा जाए
हैं जो बात दिल मैं वो जुबा पे नजर आये
ना हि बंद किताब को
कोई जान पाया हैं न कोई समझ पाया हैं
इस नकाब को हटा के देखो
दुनिया को समझ के देखो
कहीं इस नकाब भरी दुनिया मैं
आप भटक न जाए
और जब नकाब खुले तब
दुनिया समल ना पाएँ.-
क्या तुम मेरी सूरज की पहली किरण बनोगी
क्या तुम मेरे सुहाने मौसम की चाय बनोगी
क्या तुम मेरी चांदनी रात का सितारा बनोगी
क्या तुम मेरी सुबह की चहचाहती गोरया बनोगी
मैं बोलु कुछ तो कुछ तुम बोलोगी
मैं चलु कुछ कदम क्या तुम साथ चलोगी
मैं हँस दु कुछ पल तो क्या तुम हसोगी
क्या तुम डलती शाम का सूरज बनोगी
क्या तुम मेरे खाली पड़े दिल में
अपने दिल की स्याही से कुछ लिखोगी.-
ना जाने कितने ख्वाब छुट गए
एक ख्वाब पुरा हुआ तो दूसरा रह गया
ये तो एक सिक्के के दो पहलु के समान हैं
जहाँ लाख कोशीश के बाद भी दोनों का
एक साथ आना संभव नही.-
वक्त सुबह का भी है दिन का भी
शाम का भी,बचपन का भी ,जवानी का भी,बुढापे का भी
अच्छा वक्त भी ,बुरा वक्त भी!
इन सब मे यदि कोई तटस्थ हैं तो वो इंसान जो सभी परिस्थितियों मे हैं
अब वक्त केसा रहेगा ये उसके बचपन से जवानी के कर्मो पे निर्धारित है.
इसलिए कहते हैं वक्त वक्त की बात हैं.-