तो आखिर नवरात्रा फ़िर एक नए सुख की उम्मीद के साथ समाप्त हो गए।
नवरात्रों में लोगों ने सभी नौ देवियों को पूजा;
और उसी तरह नौ देवियों का रूप मानी जाने वाली अपने घर की स्त्री
अपनी माँ, बहन, पत्नी और अपनी बेटी
उनको भी बहुत आदर और सम्मान दिया,
फिर कन्याभोजन के साथ नौ देवियों को विदा किया।
और फिर विजयादश्मी पर लोगों ने बुराई पर
अच्छाई का प्रतीक मानकर रावण का दहन भी किया।
पर क्या सच में, रावण दहन करने के बाद बुराई हार ही जाती है ?
क्या सच में, अच्छाई की एक नई शुरुआत हो जाती है?
नही!
मुझे तो नहीं लगता।
क्योंकि इन नौ दिन के पहले जो गालियाँ और
जो बेइज्जती घर की स्त्री को दी जा रही थी
वो इन नौ दिनों के बाद फिर शुरू ही गयी।
फ़िर लोगो ने उसी तरह अपनी माँ, बहन, पत्नी और बेटी को
किसी न किसी तरह अपमानित करना शुरू कर दिया।
काश की नवरात्र नौ दिन के नहीं, 365 दिन के होते,
या फिर काश की लोग सच में नौ देवियों को अपने घर की स्त्री
और बाक़ी सभी स्त्रियों में भी देख पाते।
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