DeEksha Pant   (DeEksha Pant)
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Joined 29 May 2019


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Joined 29 May 2019
5 JUL 2024 AT 13:03

स्त्री को मर्यादा का पाठ सिखाने वाला पुरुष
कभी राम ना बन पाया।।

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22 APR 2023 AT 20:37



गढ़ना और बिखरना


शब्दों में गढ़ रही हूं,
मैं जो गुमशुदा सी हो गई हूं,
उस, "मैं" को खोज रही हूं।
नैन नक्श रोज बुनती हूं,
कोरे पन्ने पर ,
कभी वो तंग से लगते है ,
तो कभी रंग रंग सजते है,
लकीरें टेढ़ी हो गुजरती है,
कागज कभी सुर्ख तो ,
कभी काला हो जाता है ,
फिर वो पन्ना फाड़ देती हूं,
कुछ इस तरह ,
मैं, शब्द शब्द होकर बिखर जाती हूं,
कुछ इस तरह बिखरी मैं,
अंत तक खुद को गढ़ नहीं पाती हूं,
खुद को ढूंढने में फिर असमर्थ हो जाती हूं।।

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2 APR 2023 AT 19:28

मैं जोशीमठ

खंड खंड हो रहा हूं,
प्रचंड दुःख की अग्नि में झूलस रहा हूं,
मैं, जोशीमठ का रहने वाला हूं,
सिर्फ नम आंखों का सैलाब लिए फिर रहा हूं।।

दरकने लगी है, घर की दीवारें,
टूटने लगी है, आशा हमारी,
तब्दीली आई, बहुतायत परियोजना लाई,
जिसने घर से बेघर करने में संपूर्ण भूमिका निभाई।।

मेरी पीड़ा दिखाई /सुनाई जा रही है,
मगर मैं ही "मैं" को समझ सकता हूं,
अपना घर ,भूमि, आंगन भला कैसे भूल सकता हूं,
मैं, जोशीमठ का रहने वाला हूं,
सिर्फ प्रशासन से गुहार ही कर सकता हूं।।

शंकराचार्य के तप से, अखंड आस्था का प्रतीक
आज अस्तित्व खोने को तत्पर है,
शासन हिल उठे है,जनता में कोहराम है,
अपने जोशीमठ को अब कहां आराम है।।

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21 NOV 2022 AT 21:49

हैरत मुझे इस बात पर है,
सब कुछ उसने, खत्म कर देने के वाउजुद भी,
दोषी करार मुझे ही ठहराया ।।

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20 NOV 2022 AT 18:20

अलग होकर मुझसे ,ढूंढने हमसे बेहतर निकले थे,
लेकिन तलाश हम सा भी नहीं कर पाए।।

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20 NOV 2022 AT 16:14

मैं , मैं से लड़ जाता हूं,
तब मैं एक पुरुष कहलाता हूं,

कभी नाचता हूं, बनकर राग,
तो कभी जिम्मेदारियों के तले,
बनकर किसी का सुहाग,


आसुओं का ढेर लगा सीने में,
फिर भी इस जग मे मुझे है, हंसना
मैं पुरुष हूं, और मुझे नहीं है, रोना

मुझे बहुत से अधिकार है,
फिर भी मानो सब बेकार है,
समाज रूपी रस को चख लेता हूं,
मगर संवेदना व्यक्त नहीं कर सकता।।


और कुछ इसी तरह ना जाने कितनी बार
खुद को समझाता हूं
और फिर सब भूल आगे बढ़ जाता हूं।।

मैं , मैं से लड़ जाता हूं,
तब मैं एक पुरुष कहलाता हूं,

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18 NOV 2022 AT 18:36

मैनें उसकी गलतियों से भी रिश्ता बनाया था,
उसने मुझे हमेशा सिर्फ एक बीता किस्सा बताया था।।

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17 NOV 2022 AT 19:23

उसे पूरी तरीके से खो देने के बावजूद भी,
उसे खो देने का डर अभी भी लगा रहता है।।

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16 NOV 2022 AT 18:54

मैनें हर दफा उसे, अपनी कमियां बताई,
उसने मुझे हमेशा मेरी अच्छाई से अवगत कराया।।

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9 NOV 2022 AT 22:16

उसके बदले हुए हालात का दोषी,
वह मुझे ही ठहरा रहा है।
जो खुद हालातों संग मजबूरी का,
हवाला देकर बदला था।।

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