कैसे वादा करें हम अगली मुलाक़ात की
मुसलसल चलते ईन साँसों पर भी तो हमारा इख़्तियार नहीं ।
कैसे कहें फिर गुफ़्तगू होगी अनकही बातों की
हम तो ग़ुलाम है वक़्त की....उस पर हमारी हुकूमत नहीं ।।-
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं......
दील का ज़ख्म
दिखावटी मुस्कुराहट चेहरे पर ले आते हैं
दर्दे- ए- दील न बयां कर सको
लफ़्ज़ों को ऐसे भी नज़ाकत सिखा देते हैं
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं...
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं......
कतरा कतरा बिखर के भी
सिमटा हुआ वह हुनर दे जाते हैं
बिन टपके हुए वह आंसुओं के कश्तियां
छलकते हुए आंखों के किनारे पर डूब जाते हैं
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं....
कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं......-
बयां करें दर्द अपनी हम में इतनी हूनर कहां
हम तो यूं ही मुस्कुराके गुजरने वालों में से हैं......
बिखर कर छलकाएं आंसू हमारे आंखों में वह नजाकत कहां
हम तो नजर झुका के आंसू छिपाने वालों में से हैं....-
ए ज़िन्दगी
तु चाहे हमें कितनी भी ठोकर मार ले
हम भी इरादों के बड़े पक्के हैं
एक न एक दिन मंजिल हासिल कर ही लेंगे
ठोकर ही तो है....
ज़हर थोड़ी न है जो खा कर मर जाएंगे-
यह जो मुझे एक तलब है तेरी
इसको एक मुकाम देना चाहती हूं
बेहतरीन ना सही
पर एक बेहतर जिंदगी चाहती हूं ।
जिसमें ना कोई पाबन्दी हो और ना कोई डर
ना ही कोई शर्त और ना ही कोई हर्ज
थोड़ी देर के लिए ही सही
मैं वह कटी पतंग बनना चाहती हूं ।
मैं ठहरना नहीं यूं ही चलना चाहती हूं
एक पंछी की तरह उड़ना चाहती हूं
मैं आजाद होना चाहती हूं
मैं आजाद होना चाहती हूं.....-
यहां है जुबान पर सब बेजुबान क्युं हैं ?
सारे साथ तो हैं पर सब जुदा सी क्युं हैं ?
सब करीब हैं पर एक दूसरे से बिछड़े क्युं हैं ?
यहां कहने को सब पास हैं
पर सोचो तो इतनी दूरी क्युं है ?-
अब हैं सामने जी भर के देख लिजिए
जो अनकही है वो बातें कर लिजिए ।
चार कदम हि सही कुछ दूर और चल दिजिए
क्या पता शायद कल फिर हम ना मिलें ।।
जिन्दगी एक सफ़र है....
पता नहीं किस राह की किस मोड़ पे हमारी मंजिल आ जाए ।
पास हैं आपके हमें अब गले लगा लिजिए
क्या पता शायद फिर आपको ये वक्त ना मिलें ।।
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ए इनसान तु असल मैं है कौन
फैलता है तु जमाने में मसीह-ए-वक्त बन कर ।
और सीमट लो तो तु एक मुठ्ठी राख भी नहीं ।।
तुझमें इतना गुरूर किस बात का है
ना यह दुनिया तेरी है और ना ही तु इस दुनिया की ।
तु तो सिर्फ मिट्टी के सिवा और कुछ भी नहीं ।।-
यूं तो लोग आज भी ताने देते हैं और आगे भी देते रहेंगे
वह कब सोचते थे अपनी जो अब सोचने लगेंगे ।
हम ना फैलायेंगे हाथ कभी उनके सामने
क्यूंकि लोग एहसान के नाम पर सिर्फ सौदा करेंगे ।।-
हम क्यूं चलें उस रास्ते
जाहां भीड़ बहुत है ।
शायद आसान लगता होगा सफर
पर लोग वहां तनहा बहुत हैं ।।
जब यह ज़िन्दगी का सफ़र हमारी है
तो राह भी हमारी होनी चाहिए ।
वह भीड़ भी होगी एक दिन हमारी पिछे
बस अकेले चलने का होंसला बुलंद होनी चाहिए ।।
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