सारा इल्जाम अपने सर लेकर .....
हमने किस्मत को माफ कर दिया ...!!
तेरे सारे बददुआ अपने सर लेकर ....
तेरे नफरत को ही कुबुल कर लिया ....!!
तू कभी तो लोटेगा......, ये सोच कर
हमने जिंदगी गुजार दिया .....!!
लोग जब पूछे..., क्या कर रहे हो...?
हमने चुपके से प्यार केहे दिया .....!!-
तेरा मुस्कुराता दुआ चेहरा
मुझे अच्छा लगता है
तु आ कर मेरे गले लगे
मुझे अच्छा लगता है
सायद मेरे गले लगने से तेरा दुःख ही थोड़ा कम हो जाए
सायद तेरे गले लगने से मेरा दोस्ती का मान ही थोड़ा बढ़ जाए
पता नहीं कितने ऐसे लम्हे होगा, जो तुम्हारे खुशी या घम का सहारा बनूंगा
देखते देखते 11साल हो गया , और एही यादों के साथ एक दिन में चल बसूंगा .....
एक दिन में चल बसूंगा.......-
मेरे खामोशी के पीछे एक आवाज़ हे
अगर सुनना चाहते हो तो गौर से सुनो......
मेरे खामोशी के पिछे एक छोटा बच्चा अपने मां को मां मां केहेके बुला रहा हे,
अगर सुनना चाहते हो तो गौर से सुनो......
मेरे खामोशी के पीछे एक जवान अपने पिता की कंधा मांग रहा है ,
अगर सुनना चाहते हो तो गौर से सुनो.....
मेरे खामोशी के पीछे एक भटका हुआ बेटा अपना घर का रास्ता पुछ रहा हे,
अगर सुनना चाहते हो तो गौर से सुनो....
अगर सुनना चाहते हो तो गौर से सुनो .......-
जान को जान से अलग किया
तुम्हारे खुसी के लिए खुद को तबाह कर दिया ....
घर बसाने की कोशिश में खुद ही बेघर हो गेया
फिर भी लोग कहते हैं .....
में खुद को नही बदल पाया....
में खुद को नही बदल पाया....
खेलने घूमने के उमर मे, मेने घर का भार उठाया
खुद के सपने कुचल कर, दिन रात मेहनत किया
बड़ा बेटा जो था, निभाने की खूब कोशिश किया
माप करना मुझे, शायद में ठीक से नहीं कर पाया
में खुद को नहीं बदल पाया .....
तुम सही केहेते हो ....
ना में एक अच्छा भाई, ना बेटा बन पाया.....
एक मुठ्ठी खाना के बदले, कितना तुमको रुलाया
में खुदको नहीं बदल पाया......
में खुदको नहीं बदल पाया .......-
कभी कभी याद करता हूं ओ पूराने दिन
जब हम पहले पहले दोस्त बने थे।
याद करता हूं ओ पुराने दोस्त को
जिसके साथ जिन्देगी गुजारने की बादा किए थे।
कभी कभी जब खोल ता हूं ओ किताब हमारे यादों की जो मेने दिल में सजा कर रखा हे
कभी हसी तो कभी आसू आके हमारे किस्सों का उजाला करते हैं
हमने कभी सुना था की मोहोबोत पर सब कुरुबान होते हैं
मेरा क्या, में तो ऐसे भी बेवफ़ा हूं
मेरे दोस्त.......
ए जिंदेगी बस तेरे नाम हे.........-
आओ सुनाता हूं एक अनाथ की काहानि
जो दूसरों के लिए जीता हे, लेकीन ख़ुद का कोई नहीं
दूसरों की खुशी में खुशी ढूंढता है ओ
दूसरों के दुःख में ख़ुद दुःखी हो जाता हे .........
नाटक करना नहीं आता है उसको,लेकिन फ़िर भी ढूंगी केहेलाता हे,
सब के साथ मिल के रेहेता तो है, लेकिन फ़िर भी एकला पाया जाता है ..........
केहेता हे दोस्त ही उसका परिवार हे, दोस्त ही उसका संसार
दोस्तों के लिए जान छिड़कने बाला आज खुद हो गेया हे बेकार ......
माफ़ करना मेरे दोस्त, अगर तुम्हारे दिल दुखाया है,
आखिर एक अनाथ ही हूं, जिसको समझने बाला कोई नहीं है .....-
सब कुछ खोने के बाद ए एहसास हुआ की
जिंदगी क्या हे...........
अपनों का साथ, अपना परिबार खोने के बाद ए पता चला कि
साथ निभाना क्या हे...........
गिरते गिरते खुदको बचाने के कोशिश में, जब लदभब गिर ही गेया था, तब पता चला कि
ए दोस्त क्या हैं.........
उस रात मरते मरते जब फ़िर से जिन्दा हुआ़,तब पता चला कि
सच में अपना कोन हे .........
सच में अपना कोन हे.........
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बैराग का चोला ओढ़े, हाथ में कमंडल लिए मोक्ष कि खोज् में जाना हे
ये मेरे भोले कि नगरी काशी बस यहीं तो मेरा ठिकाना हे।-
ମନେ ଅଛି ସେଇ ପିଲା ଦିନ!! ......
କେତେ କଥା ଆମେ ଭାବିଥିଲେ, ଆଖିରେ ଥିଲା କେତେ ସ୍ବପ୍ନ
ମନେ ଅଛି ସେଇ ପିଲା ଦିନ!!.....
ସାଂଗହୋଇ ଆମେ ଖେଳରେ ଖେଳରେ ଗଢିଥିଲେ ନୂଆ
ଜୀବନ
ହାତ ଧରା ଧରି ହୋଇ ଚାଲିବା ବୋଲି କରିଥିଲେ ଆମେ ପଣ
ଦୁଖରେ ସୁଖରେ ସାଥୀ ହୋଇ ରହିବା ସାରା ଜୀବନ....
ତୁମ ଜନ୍ମ ଦିନେ ଶୁଭେଚ୍ଛା ସହିତ ଜଣାଉଛି ଶୁଭକାମନା
ପିଲାଦିନ ସାଥୀ କୁ ମନେ ରଖିଥିବ, କହିବନି ମୋତେ ଅଚିହ୍ନା...-
ଅନ୍ଧାର ରାତିର ଅନ୍ଧାର ଭିତରେ ନିଜକୁ ହଜେଇ ଦେଇଛି
ମନର କାଗଜେ ପ୍ରେମ ତୁଳୀ ଧରି ତୁମ ଛବି ଟିଏ ଆଙ୍କିଛି
ଜହ୍ନ ର ଆଲୋକ ସାକ୍ଷୀ ରଖି ପ୍ରିୟା ତୁମକୁ ଭଲ ପାଇଛି
ମରିବା ପରେବି ଭୁଲିବିନି ପ୍ରିୟା ତୁମ ରାଣ ମୁଁ ଖାଉଛି
ଯେତେ ବାଧା ବିଘ୍ନ ଆସିଲେ ବି ପ୍ରିୟା ମୁଁ ତ ବଞ୍ଚି ରହିଛି
ସ୍ବପ୍ନ ରାଇଜ ରେ ଆମ ପାଇଁ ପ୍ରିୟା ଘର ଟିଏ ମୁଁ ତୋଳୁଛି
ଆଗକୁ ଆଗକୁ ଦେଖିଯାଅ ପ୍ରିୟା ଆଉ କଣ ସବୁ ଘଟୁଛି
ତୁମ ଓଠର ନିରବତା ମୋତେ ଅନ୍ଧାର ଘର ପରି ଲାଗୁଛି
ଅନ୍ଧାର ଘର ପରି ଲାଗୁଛି....
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