डॉ. शिखा सिंह भारद्वाज  
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Joined 13 May 2018


Joined 13 May 2018

भारत माँ के माथे की बिंदी हूँ,
इसलिए ही तो, मैं हिंदी हूँ।
अ, आ, इ से क्ष, त्र, ज्ञ तक,
ज्ञान से विज्ञान तक, मैं सजीव हूँ।
शब्द से वाक्य और वाक्य से अर्थ,
भाव से भावों तक, मैं संविवेक हूँ।
रग-रग में बहती संस्कृति की धारा,
हर सुर में गूंजे मेरा ही नारा।
अलंकार, रस और छंदों की कृति हूँ,
इसलिए ही तो, मैं हिंदी हूँ।
गद्य में गाम्भीर्य, पद्य में मिठास,
जन-जन की बोली, मन की आवाज़।
भारत की पहचान, हृदय की धुन,
विश्व पटल पर उज्ज्वल गगन हूँ।
भारत माँ के माथे की बिंदी हूँ,
इसलिए ही तो, मैं हिंदी हूँ।

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हिंदी है आत्मा हमारी, हिंदी दिल की पुकार है,
हिंदी से ही दुनिया जाने, भारत की पहचान है।
तुलसी की वाणी मधुर, सूर के सवैया प्यारे,
कबीर की साखी ज्ञान की, मीरा के कन्हैया न्यारे।
हिंदी का जादू है जोड़ता, जीवन का हर क्षण-क्षण,
माँ की बोली, माटी की खुशबू, संस्कारों का वरदान।
हिंदी का सम्मान करेंगे, यही है हम सबका अभियान,
आओ मिलकर शपथ उठाएँ, हर गली, हर गाँव सजाएँ।
हिंदी की गूँज हो चारों ओर,
भारत माँ का माथा ऊँचा उठाएँ,
हिंदी दिवस पर हम सब मिलकर,
अपनी मातृभाषा का सम्मान बढ़ाएँ।

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सच मानो तो…
तुझे गले लगाना
इक सुकून-ए-आराम है।
घंटों टकटकी लगाकर
तेरे करीब बैठ, तुझे देखना
इक ख़्वाब-ए-हसीन है।
तेरे बिना हर लम्हा अधूरा,
तेरे संग हर पल मुकम्मल है।
तेरा होना ही
मेरे जीने का सबब है।
सच मानो तो…
तेरे बिना मैं, मैं नहीं हूँ।
तेरे बिना ये दुनिया अधूरी है,
और तेरे साथ ही पूरी है।

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शिक्षक जीवन ज्योत-समान,
करते वे सबका कल्याण।
ज्ञान के अमृत से सींचकर,
संस्कारों का करते निर्माण।
हृदय के अंधकार को हरते,
मस्तिष्क में प्रकाश भरते।
संशय को दूर भगा कर,
सत्य के पथ पर हमें धरते।
कर्तव्यनिष्ठा का उदाहरण हैं,
धैर्य, त्याग और समर्पण हैं।
वे ही जीवन के आधार,
उनमें मानवता है, आपार
शिक्षक से बढ़कर कुछ भी नहीं,
उनके ऋण का मोल नहीं।
नमन है उन गुरुजनों को,
जिनके बिना जीवन पूर्ण नहीं।

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सुनो!! एक बात बोलूँ...
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो एक इत्तफ़ाक थी,
बस साथ मरते दम तक चाहिए था।
बोलो दोगी न??
चाहे तुम कितनी ही व्यस्त क्यों न हो,
चाहे तुम कितनी ही मस्त क्यों न हो।
तुम हो चाहे दुनिया की कितनी ही उलझनों में उलझी हुई,
चाहे तुम कितनी ही मुझसे त्रस्त क्यों न हो।
बोलो दोगी न......मरते दम तक अपना साथ
बोलो दोगी न??
ज़िंदगी के दौड़ में हम, एक-दूसरे से
पीछे ही क्यों न रहें।
फिर भी हम साथ रहेंगे, और तो और
दोस्ती की किताब में लिखा रहेगा
हमारा नाम, पहले पन्ने पर, सबसे ऊपर
तो बोलो दोगी न...मरते दम तक अपना साथ

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दोस्ती के नाम.... सुनो! सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो
सच मानो, बस एक इत्तफ़ाक था,
पर ये दिल जानता है - उस एक पल में उम्र भर की बात थी।
तुम्हारी मुस्कान की ठंडी छांव में, मैंने कितनी ही धूपें सह लीं,
तेरे एक हँसने भर से, मेरी आँखों की नमी बह चली।
चाहे तुम कितनी भी व्यस्त रहो,
मैं तुम्हारे सन्नाटों में भी आवाज़ बन जाऊँ,
जब दुनिया करे मुझसे किनारा
तो तुम मेरी परछाईं बन जाओ।
तू उलझी हो जब ज़िंदगी की उलझनों में,
मैं तेरे मन की गिरहें खोल दूँ,
और जब लगे कि मुझे सबने छोड़ दिया
तब भी मैं तेरे सामने अपना मन खोल दूँ।
अगर तू मुझसे कभी नाराज़ हो जाए,
तो मैं खामोशी में भी तुझसे माफ़ी माँग लूँ,
तेरे बिना सब अधूरा लगे - ये बात हर सांस से कह जाऊँ।
बस एक बात का वादा कर दे
किसी भी मोड़ पे जुदा न होगी तू मुझसे ,
जो भी हो जाए, थामे रखना हाथ मेरा,
क्योंकि मेरी दुनिया — तू ही तो होगी।
बोलो न...दोगी न साथ मरते दम तक?
इस दिल की हर धड़कन में
बस तुम्हारा नाम रहेगा — तब तक...

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"साथ चाहिए... बस मरते दम तक"
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो
बस एक इत्तफ़ाक भर थी,
पर उसी इत्तफ़ाक ने
मेरी पूरी ज़िंदगी बदल दी।
ना सोचा था कि यूँ
तुम इतने खास बन जाओगे,
हर खुशी, हर दर्द में
मेरे सबसे पास बन जाओगे।
मैंने कभी माँगा नहीं तुमसे कुछ,
बस एक छोटी-सी बात चाहिए थी —
साथ… बस साथ चाहिए था,
मरते दम तक….. बोलो, दोगे न?
चाहे तुम कितनी ही व्यस्त क्यों न रहो,
या अपनी ही मस्तियों में खोए रहो, बस एक कोना
मेरे लिए भी रखना अपने दिल में —छोटा सा ही सही।
अगर दुनिया की उलझनों में, तुम खुद से भी दूर हो जाओ,
तो भी इतना यक़ीन रखना, मैं तुम्हारे पास रहूँगी —
ख़ामोशी में, पर साथ हर पल।.... और अगर कभी
मैं तुम्हें बोझ लगने लगूँ,
तुम मुझसे त्रस्त भी हो जाओ —तो भी बस एक बार मुड़कर देख लेना,
मैं वहीं खड़ी रहूँगी — पहले की तरह।
मैंने तुमसे कभी दिखावटी रिश्ते नहीं चाहे, बस एक सच्चा साथ,
एक अपनापन…एक वो बंधन जो शब्दों से नहीं,
दिलों से जुड़ता है।
तो बोलो…. दोगे न साथ मेरा —बिना शर्तों के, बिना दूरी के,
बस यूँ ही….. मरते दम तक?

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सुन!...... ऐ साकी, अब भी साँसें चलती हैं,
धड़कने धक-धक धड़कती हैं, यही इज़हार है।
है बरकरार लबों पे अब भी मुस्कुराहट,
मगर दिल के भीतर कोई घना अंधकार है।
हर मोड़ पे तेरी ही आहट तलाशती हूँ,
क्योंकि इन आँखों को अब भी तेरा इंतज़ार है।
किसी बहार में अब वो रंग नहीं मिलता,
तेरे बिना हर मौसम अधूरा गुज़ार है।
लबों से चुप, पर दिल चीख़ता है रातों में,
ये खामोशी कोई आम नहीं, पुकार है।
छूकर गुज़रा था तू जो एक बार मेरी रूह को,
अब हर साँस उसी पल की सज़ा का शिकार है।
तेरे जाने के बाद भी टूट न सकी 'तार्शी',
इस मोहब्बत में शायद यही सच्चा हार है।

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"किससे कहूँ?"सोचती हूँ,
किस्से कहूँ अपने मन की बात,
जो छिपी है कहीं दिल के कोने में चुपचाप।
फिर सोचती हूँ,
किस से कहूँ वो टूटी उम्मीदें, वो अधूरे ख्वाब
जो मुस्कान की ओट में, धीरे-धीरे दम तोड़ते हैं हर रात।
कहाँ जाऊँ लेकर अपनी थकान,
किसे सुनाऊँ वो अनकहे अरमान?
कभी खुद से लड़ी,कभी सबकी बनी सशक्त पहचान।
फिर भी भीतर कहीं, एक कोना है वीरान।
पर ये चुप्पी भी, अब मेरी शक्ति बन गई है,
हर आंसू एक दीप बनकर, रास्ता दिखा गई है।
अब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं,
क्योंकि मैंने खुद से
कहना सीख लिया है, हर दर्द को उम्मीद में
बदलना जान लिया है।
अब मैं अपने लिए, एक कहानी बनती हूँ,
हर सुबह खुद को, नई रौशनी में पाती हूँ।
सोचती हूँ —अब किससे कहूँ?
जब खुद ही सबसे बड़ा सहारा हूँ।

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समय का पहिया चलता है, हर क्षण कुछ कहता है।
दिन ढलता है, रात आती है, जग जीवन की बात बताती है।।
सूरज उगता है, अस्त होता है, हर सुबह एक स्वप्न संजोता है।
पत्तों से गिरती शबनम जैसी, क्षण-क्षण बीते, पल - पल जैसी।।
कल जो था, वो आज नहीं है, भविष्य किसी का साझ नहीं है।
जो रुक गया, वो कहीं पर खो गया, जो चल पड़ा, वो किसी का हो गया।।
बचपन हँसता खेलता बीता, तरुणाई ने फिर मन है जीता।
प्रेम, तकरार, सपनों की माया, जीवन की अपनी-अपनी
कभी धूप और कभी छाया।।
समय सिखाता धैर्य तुम रखना, सांसों का तुम मोल समझना।
न हर्ष में अति, न शोक में रोओ, अविरल प्रवाह में जीवन संजोओ।।
पल जो बीते, फिर कभी न आएँ, जैसे सूखे पत्ते फरफर उड़ जाएँ।
हर मोड़ नया सिखाता है, हर क्षण कुछ जताता है।।
घड़ी की सुई नहीं है थमती, धूप-छाँव सी बस राह बदलती।
अतीत की छाया कभी न पकड़ो, भविष्य के डर में कभी न तड़पो।।
वर्तमान ही सत्य धरा है, इसे जियो, ये खुला सहारा है।
समय ने! राजा, न कोई रंक को छोड़ा, इसने तो जीवन के सच्चे सब्र को तोड़ा।।
अविराम इसकी चाल निराली, गति में ही इसकी है लाली।
जो है इसके संग चल पाता, वो ही जीवन के सत्य को पा जाता है।।
कभी मुस्कान, कभी अश्रु लेकर, समय बदलता अंतर्मन के भीतर।
पर, हर रात के बाद घनेरा, हर अंत से जन्मे सवेरा।।
जीवन उसी का संग है पाता, जो है हर पल को है अपनाता।।

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