सुनो!! एक बात बोलूँ...
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो एक इत्तफ़ाक थी,
बस साथ मरते दम तक चाहिए था।
बोलो दोगी न??
चाहे तुम कितनी ही व्यस्त क्यों न हो,
चाहे तुम कितनी ही मस्त क्यों न हो।
तुम हो चाहे दुनिया की कितनी ही उलझनों में उलझी हुई,
चाहे तुम कितनी ही मुझसे त्रस्त क्यों न हो।
बोलो दोगी न......मरते दम तक अपना साथ
बोलो दोगी न??
ज़िंदगी के दौड़ में हम, एक-दूसरे से
पीछे ही क्यों न रहें।
फिर भी हम साथ रहेंगे, और तो और
दोस्ती की किताब में लिखा रहेगा
हमारा नाम, पहले पन्ने पर, सबसे ऊपर
तो बोलो दोगी न...मरते दम तक अपना साथ-
दोस्ती के नाम.... सुनो! सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो
सच मानो, बस एक इत्तफ़ाक था,
पर ये दिल जानता है - उस एक पल में उम्र भर की बात थी।
तुम्हारी मुस्कान की ठंडी छांव में, मैंने कितनी ही धूपें सह लीं,
तेरे एक हँसने भर से, मेरी आँखों की नमी बह चली।
चाहे तुम कितनी भी व्यस्त रहो,
मैं तुम्हारे सन्नाटों में भी आवाज़ बन जाऊँ,
जब दुनिया करे मुझसे किनारा
तो तुम मेरी परछाईं बन जाओ।
तू उलझी हो जब ज़िंदगी की उलझनों में,
मैं तेरे मन की गिरहें खोल दूँ,
और जब लगे कि मुझे सबने छोड़ दिया
तब भी मैं तेरे सामने अपना मन खोल दूँ।
अगर तू मुझसे कभी नाराज़ हो जाए,
तो मैं खामोशी में भी तुझसे माफ़ी माँग लूँ,
तेरे बिना सब अधूरा लगे - ये बात हर सांस से कह जाऊँ।
बस एक बात का वादा कर दे
किसी भी मोड़ पे जुदा न होगी तू मुझसे ,
जो भी हो जाए, थामे रखना हाथ मेरा,
क्योंकि मेरी दुनिया — तू ही तो होगी।
बोलो न...दोगी न साथ मरते दम तक?
इस दिल की हर धड़कन में
बस तुम्हारा नाम रहेगा — तब तक...-
"साथ चाहिए... बस मरते दम तक"
तुमसे दोस्ती की शुरुआत तो
बस एक इत्तफ़ाक भर थी,
पर उसी इत्तफ़ाक ने
मेरी पूरी ज़िंदगी बदल दी।
ना सोचा था कि यूँ
तुम इतने खास बन जाओगे,
हर खुशी, हर दर्द में
मेरे सबसे पास बन जाओगे।
मैंने कभी माँगा नहीं तुमसे कुछ,
बस एक छोटी-सी बात चाहिए थी —
साथ… बस साथ चाहिए था,
मरते दम तक….. बोलो, दोगे न?
चाहे तुम कितनी ही व्यस्त क्यों न रहो,
या अपनी ही मस्तियों में खोए रहो, बस एक कोना
मेरे लिए भी रखना अपने दिल में —छोटा सा ही सही।
अगर दुनिया की उलझनों में, तुम खुद से भी दूर हो जाओ,
तो भी इतना यक़ीन रखना, मैं तुम्हारे पास रहूँगी —
ख़ामोशी में, पर साथ हर पल।.... और अगर कभी
मैं तुम्हें बोझ लगने लगूँ,
तुम मुझसे त्रस्त भी हो जाओ —तो भी बस एक बार मुड़कर देख लेना,
मैं वहीं खड़ी रहूँगी — पहले की तरह।
मैंने तुमसे कभी दिखावटी रिश्ते नहीं चाहे, बस एक सच्चा साथ,
एक अपनापन…एक वो बंधन जो शब्दों से नहीं,
दिलों से जुड़ता है।
तो बोलो…. दोगे न साथ मेरा —बिना शर्तों के, बिना दूरी के,
बस यूँ ही….. मरते दम तक?-
सुन!...... ऐ साकी, अब भी साँसें चलती हैं,
धड़कने धक-धक धड़कती हैं, यही इज़हार है।
है बरकरार लबों पे अब भी मुस्कुराहट,
मगर दिल के भीतर कोई घना अंधकार है।
हर मोड़ पे तेरी ही आहट तलाशती हूँ,
क्योंकि इन आँखों को अब भी तेरा इंतज़ार है।
किसी बहार में अब वो रंग नहीं मिलता,
तेरे बिना हर मौसम अधूरा गुज़ार है।
लबों से चुप, पर दिल चीख़ता है रातों में,
ये खामोशी कोई आम नहीं, पुकार है।
छूकर गुज़रा था तू जो एक बार मेरी रूह को,
अब हर साँस उसी पल की सज़ा का शिकार है।
तेरे जाने के बाद भी टूट न सकी 'तार्शी',
इस मोहब्बत में शायद यही सच्चा हार है।-
"किससे कहूँ?"सोचती हूँ,
किस्से कहूँ अपने मन की बात,
जो छिपी है कहीं दिल के कोने में चुपचाप।
फिर सोचती हूँ,
किस से कहूँ वो टूटी उम्मीदें, वो अधूरे ख्वाब
जो मुस्कान की ओट में, धीरे-धीरे दम तोड़ते हैं हर रात।
कहाँ जाऊँ लेकर अपनी थकान,
किसे सुनाऊँ वो अनकहे अरमान?
कभी खुद से लड़ी,कभी सबकी बनी सशक्त पहचान।
फिर भी भीतर कहीं, एक कोना है वीरान।
पर ये चुप्पी भी, अब मेरी शक्ति बन गई है,
हर आंसू एक दीप बनकर, रास्ता दिखा गई है।
अब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं,
क्योंकि मैंने खुद से
कहना सीख लिया है, हर दर्द को उम्मीद में
बदलना जान लिया है।
अब मैं अपने लिए, एक कहानी बनती हूँ,
हर सुबह खुद को, नई रौशनी में पाती हूँ।
सोचती हूँ —अब किससे कहूँ?
जब खुद ही सबसे बड़ा सहारा हूँ।
-
समय का पहिया चलता है, हर क्षण कुछ कहता है।
दिन ढलता है, रात आती है, जग जीवन की बात बताती है।।
सूरज उगता है, अस्त होता है, हर सुबह एक स्वप्न संजोता है।
पत्तों से गिरती शबनम जैसी, क्षण-क्षण बीते, पल - पल जैसी।।
कल जो था, वो आज नहीं है, भविष्य किसी का साझ नहीं है।
जो रुक गया, वो कहीं पर खो गया, जो चल पड़ा, वो किसी का हो गया।।
बचपन हँसता खेलता बीता, तरुणाई ने फिर मन है जीता।
प्रेम, तकरार, सपनों की माया, जीवन की अपनी-अपनी
कभी धूप और कभी छाया।।
समय सिखाता धैर्य तुम रखना, सांसों का तुम मोल समझना।
न हर्ष में अति, न शोक में रोओ, अविरल प्रवाह में जीवन संजोओ।।
पल जो बीते, फिर कभी न आएँ, जैसे सूखे पत्ते फरफर उड़ जाएँ।
हर मोड़ नया सिखाता है, हर क्षण कुछ जताता है।।
घड़ी की सुई नहीं है थमती, धूप-छाँव सी बस राह बदलती।
अतीत की छाया कभी न पकड़ो, भविष्य के डर में कभी न तड़पो।।
वर्तमान ही सत्य धरा है, इसे जियो, ये खुला सहारा है।
समय ने! राजा, न कोई रंक को छोड़ा, इसने तो जीवन के सच्चे सब्र को तोड़ा।।
अविराम इसकी चाल निराली, गति में ही इसकी है लाली।
जो है इसके संग चल पाता, वो ही जीवन के सत्य को पा जाता है।।
कभी मुस्कान, कभी अश्रु लेकर, समय बदलता अंतर्मन के भीतर।
पर, हर रात के बाद घनेरा, हर अंत से जन्मे सवेरा।।
जीवन उसी का संग है पाता, जो है हर पल को है अपनाता।।-
समय का पहिया चलता जाता, न रुकता है, न थक कर आता।
सुख-दुख इसके हमदम साथी, सिमट न पाएं, जैसे गीली माटी।।
कल जो हँसी थी, आज अश्रु है, जीवन चलता - फिरता इक चक्षु है।
जो थाम सकें, इस प्यारे पल को, भूलो-छोड़ो हारे हुए, बीते कल को।।
हर सुबह नई कहानी कहती, हर रात चुपचाप खुद में ही रहती।
कभी लगे सब कुछ है अपना, कभी लगे सब कुछ है सपना।।
कागज़ की नाव में बैठा था, खिलखिलाता बचपन।
बरगद की छाँव में छुपकर सोया था, मुस्कुराता बचपन।।
अब उलझे जीवन की थावों में, वक़्त हँसाता, फिर रुलाता है।
कभी हौसला, तो कभी उम्मीद जगाता है बचपन।।
समय न रुकेगा, फिर तुम क्यों रुको?
हर क्षण में तुम चलो, फिर क्यों थमो?
जो बीत गया, इतिहास हुआ, जो आएगा, वो विश्वास हुआ।
प्रेम करो, कर्म करो, मुस्कराओ अभी से,
हर क्षण को पलकों में बसाओ अभी से।।
समय न दोषी, न ही भगवान, यह तो बस बहे जैसे निर्वाण।
गौरव मिले, अपमान भी पाए, वक़्त दोनों को साथ में लाए।।
जो स्थिर रह पाया, बीच तूफान में, बस रह गई, वो सच्चाई इंसान में।
वक़्त का खेल निराला होता, पल में टूटता , पल में बनता।।
जो सीखे उससे, वो हर पल जीते, जो हारे, वो भी सब कुछ अनजाने में सीखे।।
न शिकायत कर, न रोक उस राह को, छुना ही है जीवन की उस चाह को।
जहाँ समय का पहिया चलता जाए, जो थमे, वो ही पीछे रह जाए।।-
तुम सुनो!...... ऐ साकी, अब भी साँसें चलती हैं,
धड़कने धक-धक धड़कती हैं, यही इक़रार है।
है बरकरार लबों पे अब भी मुस्कुराहट,
तेरे जाने के बाद भी ये कैसा करार है?
हर सुबह तेरी याद का सूरज चमकता है,
हर शाम भीगी पलकों में तेरा इंतज़ार है।
लबों से कुछ नहीं कहती, पर आँखें कह जाती,
जो दिल में छुपा है, वो जज़्बों का खुमार है।
वो बात-बात पे जो हँस देती थी कभी,
अब खामोशियों में भी छुपा इक शुमार है।
मोहब्बत की राह में चलना आसान तो नहीं,
हर मोड़ पर बिछा कोई पुराना फ़रार है।
तेरी महफ़िल में फिर भी जाना चाहता है दिल,
नशा तेरा अभी भी रगों में बरक़रार है।
मक़ता:
‘तार्शी’ ने अब हर अश्क से रिश्ता जोड़ लिया,
तेरी यादों में भी अब एक प्यारा संसार है।-
रात की कोख में सवेरा पलता है,
स्त्री के गर्भ से जीवन की नई किरणें निकलती हैं।
वही स्त्री जो नन्हें जीवन को जन्म देती है,
वही स्त्री जो सृष्टि को संवारती है,
उसे नया अर्थ देती है।
स्त्री की ममता से जीवन की नई शुरुआत होती है,
स्त्री के प्रेम से जीवन की नई उम्मीदें पैदा होती हैं।
वही स्त्री जो जीवन को सुरक्षा देती है,
वही स्त्री जो जीवन को संवार देती है,
उसे नया अर्थ देती है।
रात की कोख में सवेरा पलता है,
स्त्री के गर्भ से जीवन की नई किरणें निकलती हैं।
यही है स्त्री की शक्ति,
यही है स्त्री की महानता।
रात की कोख में सवेरा पलता है
अर्थात् स्त्री से ही दिन निकलता है-
नारी शक्ति की महानता को सलाम,
लिखें जाते हैं हर दिन इनके कलाम।
महिलाओं की महिमा का होता है सम्मान,
कोटि-कोटि करते हैं हम इन्हें प्रणाम।
तुम्हारी कोमल वाणी में शक्ति है,
तुम्हारे कठोर निर्णय में साहस है।
तुम्हारी नरम शैली में मधुरता है,
तुम्हारे सुंदर और सभ्य आचरण में गौरव है।
तुम्हारे मधुर व्यवहार में सहानुभूति है,
तुम्हारे सहानुभूति की धार में जीवन-गंगा है।
तुम्हारी महानता को दर्शाती है यह झंकार,
हमारी ओर से मुबारक हो खुशियों की बहार।
तुम्हारी शक्ति को प्रणाम ,
तुम्हारी महानता को नमन,
तुम्हारी तरह चमकता रहें यह गगन ।
तुम माँ, बेटी, बहन, पत्नी या बहू हो,
हर रूप में देवी हो।
हर भूमिका होती है, हे नारी! तेरी असरदार,
तेरा ही वजूद-ए-दास्ताँ ज़हन में है बरकरार
तू अपने निर्मल रूप से नारी,स्वरूप बदल देती है
दुनिया के कोने-कोने में,
जीवन के संघर्ष का जयघोष करती है
तुम्हारी महानता को दर्शाती है यह झंकार,
महिला दिवस पर 'शिखा' की ओर से ढेर सारा प्यार ।-