डॉ. ऋषि अग्रवाल 'सागर'   (डॉ. ऋषि अग्रवाल "सागर")
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Joined 5 December 2016


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Joined 5 December 2016

मुहब्बत जरूरी है।
सोहबत जरूरी है।

अपनों के वास्ते,
इबादत जरूरी है।

खूबसूरत रिश्ते में,
अहमियत जरूरी है।

पानी हो मंजिलें,
शिद्दत जरूरी है।

जीतनी हो जंग,
हिम्मत जरूरी है।

अपनों के बीच,
शराफ़त जरूरी है।

सत्ता पाने में,
बहुमत जरूरी है।

रिश्ते-नातों में,
उल्फ़त जरूरी है।

बनना हो 'सागर',
मेहनत जरूरी है।

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भीतरी काया त्याग कर
ऊपरी काया को
तुम रहे हो सँवार
पर जो जरूरी है तुम्हारे
लिये इस जीवन के
अनन्त काल तक
उस काया के अंदर
भर लिये न जाने कितने
अनगिनत विकार
छोड़ दे सब प्रलोभन
समझ जीवन का
तू सही से सार।

-





पाप-पुण्य सब इस धरा पर ही कर पाओगे।
जो किया इस धरा पर, वो ही लेकर जाओगे।
कंचन-सी काया, राख बन जायेगी एक दिन,
रक्तदान करो, किसी का जीवन तो बचाओगे।

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उत्तरप्रदेश की शान है योगी।
हम सबका सम्मान है योगी।

सन्यासी जीवन को अपनाया,
सनातन धर्म की जान है योगी।

जितने दिखते शांत वो सबको,
गुंडों के लिये, तूफान है योगी।

बदल रहा अब प्रदेश जहाँ पर,
उस प्रदेश का उत्थान है योगी।

'सागर' जैसा स्वरूप है उनका,
हम सबका अभिमान है योगी।

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सब मिलकर पेड़ लगायें हम।
धरा को खूबसूरत बनायें हम।

प्रदूषण रहित हो प्रकृति सारी,
जन-जन में चेतना जगायें हम।

सनातन संस्कृति की शान है ये,
कटने-जलने से इसे बचायें हम।

पेड़ों से ही तो है जीवन हमारा,
फिर क्यों न कदम बढ़ायें हम।

'सागर' भी है प्रकृति का हिस्सा,
जनमानस को सत्य दिखायें हम।

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तेरे प्रेम के सागर में
मैं डूबना और खोना
चाहता हूँ अपना सर्वस्व
बस तुम मुझे अधिकार दो
अपने करीब आने का
अपने होने का
मैं तुझे कभी भी निराश
नहीं करूँगा अपने
प्रेम की किलकारियों से।
तुझे उतना प्रेम दूँगा
जितना प्रेम तुमने
शायद ही कहीं
पढ़ा होगा या
फिर सुना होगा।

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भूख ही तो है
जिसकी कशमकश
तोड़ देती है
हर उस इंसान को,
जो मोहमाया के
चक्कर में फँस कर
लुटा देता है अपनी
सर्वस्व शक्ति,
बन जाता है अभागा
और कर लेता है
समझौता,
अपने आप से
अपने विचारों से
अपने संस्कारों से।

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स्त्री भूखी होती है
प्रेम की, विश्वास की
तुम्हारे साथ की,
वो नहीं चाहती कोई
धन दौलत से भरा
आलीशान घर
या कोई जागीर,
वो तो चाहती है
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारा स्नेह,
जो तुम उसे
अक्सर नहीं देते,
सिवाय अपनी
हवस भरी भूख के।

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