'जद्दोजहद'
संभावनाओं को तलाशता हुआ गांव,
कब शहर के आगोश में कैद हो गया,
इसकी भनक तक न लगी l
बस एहसास हुआ ही था
तब तक बंध चुका था, जिम्मेदारी, भावना और वहम की हथकडियों में l
अब इसमें भी सुकून, संभावना और समरसता की तलाश जारी है l
इस तरह जारी है आदमी की जद्दोजहद जिंदगी से,
और वाकी है बस तलाश!-
में ज्ञानी तो बिल्कुल नहीं, बस ज्ञा... read more
'अषाढ़ी बरखा'
बीच भुवन मा आके अब बरसन लगे अषाढ़
हौले हौले महक निबौरी और गंग जल बाढ़
पीहू पीहू करै कोयलिया सो नाचन लागै मोर
काले काले बदला छा गए संग पवन का सोर
घुमडाइ बदरिया इतै निहारे ढूंढे अपना छोर
इतराते से रंग दिखाती चली सावन की ओर
नवरंगों की चादर ओढ़े ले बूंदन से ही बाढ़
धूप बड़ी ही इठलाती अब मेघन की ले आढ़
थम के बरसे जम के बरसे बदरा बीच अषाढ
आम नीम संग मस्त हो रहे संग सारे ही झाड़
गर्जन करते जिया बदरा सब चले हमारी ओर
नैन खोजते रंग देख जा अब चढ़ी घटा घंघोर
काले बदला देखे मन दिखता नहीं कोई छोर
गरज, उमड़, टिप टिप का मचा हुआ है सोर
जिन बरखा को खोज रहा, मनवा चारों ओर
बीच अषाढ़ आ धमकी जी खूब मचायें सोर l-
इंद्रधनुष
पानी की अपनी अलग ही शान होती है
छुपे रंगों की कभी इससे पहचान होती है
देखो श्वेत प्रकाश को
फिर पानी के विश्वास को
फिर दोनों की मुलाकात को
एक रंग छोड़ देता है
दूजा बस बटोर लेता है
और इसी कड़ी में बन जाता
फिर सतरंगी परिवेश
जा मरजानी के बावरे
खुद सुर, जन ओ हरिकेश l-
'टकराव'
तारों को जिद्द थी जमीं पे उतर आने की
थी जमीं को तमन्ना सारा व्योम लाने की
मनोरथ की लहरें यूँ सीढ़ियां चढ़ रही थी
अरमानों के अश्व संग आगे बढ़ रही थी
कि भूचाल आ गया जमीं ही दरक गयी
टकराव ऐसा कि बिजली ही कड़क गयी
हसरतों के युद्ध में हर कोई घायल हुआ
बस मनोरथ अपनी मार का कायल हुआ
इस तरह जमानों की जंग बंद हो चली
आसमां अपनी, जमीं अपनी राह चली-
'आसमानी बिजलियां'
स्याह काली रात में
कड़कती बिजलियां
कम से कम मौसम का
मिजाज बता देती हैं
बिन उतरे जमीन पर
बादलों को राह दिखा देती हैं
कुछ पल ही सही
वीराने में दिये जला देती हैं
आसमानी बिजलियां
मौसमों को परखना सिखा देती हैं
सावन वाले रंग नयन सब
अषाढ मा ही दिखा देती हैं
गुप्प अंधेरे में फूल खिला देती हैं
असमानी बिजलियां
चमकती ही नहीं बस हैं
जंगलों को जगमग बना देती हैं l-
'में ऐसा ही हो जाता हूँ'
खुद में ही अक्सर खो जाता हूँ
खुली हुई आँखों में सो जाता हूँ
अब मुझे फुर्सत नहीं मिलती
जाने कब बेखुद हो जाता हूँ,
कब दूर कहीं जा बैठूँ में
कब फिर से में में हो जाता हूँ
कई दफा बहस से बाहर आ,
में खुद ही चुप हो जाता हूँ
बीच बवंडर खड़ा हुआ में
अक्सर खुद में ही खो जाता हूँ
जाने क्यों में ऐसा ही हो जाता हूँ
अक्सर में खयालों में खो जाता हूँ-
स्तर और पैमानों के परिमाण में सधे,
सब युद्ध ही तो लड़ रहे हैं
निश्चित ही नश्वर जगत में
शांति अंतिम लक्ष्य
और युद्ध सतत साधन है
अंतर बस साधक का है
जो जितना साध ले l-
'योग'
साधना भी है
संकल्प भी
सन्मार्ग भी है
विकल्प भी
आत्म भी है
परमात्म भी
परंपरा है
परिप्रेक्ष भी
चिंतन भी है
चित्त भी
योग में में है
तुम भी
योग प्रभु का मार्ग भी है
प्रभु का उपदेश भी
योग प्रण है
और सार भी
मिलजुल के अपनाओ
योग का दीप जलाओ
जहाँ में उजियारा ले आओ
योग को चौतरफा फैलाओ
योग की अलख जगाओ
मिल जुल योग मार्ग पर आओl-
'ख़ास-आम'
जब डाल से सीधे
अपने पास होता है
आम तब खास होता है
देखते ही एहसास होता है
नजरिया ही मिठास होता है
सच में देखते विश्वास होता है
डाल का आम दिल के पास होता है
आम फलों की पैमाइस होता है
फलों में राजा तभी तो खास होता है
इसका अपना एक क्लास होता है
डाल के आम का अलग आभास होता है-