बसंत पंचमी को हुआ,
शारदे का अवतरण।
आशीष लेकर माँ का,
करें ज्ञान का वरण।
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कल तक मेरे लेखन पर वाह वाह
बहुत किया करते थे,
आज पोस्ट से मेरी लापता हो गए हैं
माशाल्लाह प्रख्यात कवि-कवयित्री हो गए हैं
और हम वर्षों बाद वहीं के वहीं रह गए हैं... जय हो 😊-
शुष्क ज़ज्बातों से,
तुम प्यार की सौगात क्या संभालोगे
जैसे गिर जाती है सूखी रेत हाथों से,
वैसे ही सौगात मेरी कहीँ गिरा डालोगे।-
शातिरों का चलन है साहब,
शराफ़त कब की दफ़ा हुई।
दुआ सलाम भी है वहीं तक
अपनी करनी जिसमें नफ़ा हुई।-
अपना बसंत का मौसम
पर काश !!
बाज़ारवाद सदियों पहले
जो सर चढ़कर बोला होता,
तो सनातन संस्कृति का
मदनोत्सव वैलेंटाइन से
कहीं ज्यादा चर्चित होता ।-
इक जलते बुझते ज़र्रे के मानिंद हूँ,
जब सुलगा लोगों ने सितारा समझ लिया... बुझा तो ख़ाकसार समझ लिया।-
इबादत में ना खोट था,
ना कायनात की जूस्तज़ू कर बैठे ।
बस संगदिलों से
वफ़ा की उम्मीद कर बैठे।
और वो ख़ुदा बन
दामन हमसे झटक बैठे।-
तुम जो आओ करीब
यह शब रंगीन हो जाएगी।
मेरे पहलू में भी इक चांद है,
चांदनी ये देख कुछ गुनगुना जाएगी।
दिल से दिल के होंगे अफसाने बयां
इक मुलाकात हसीन हो जाएगी।-