डाॅ राजेश हालुवासिया  
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Joined 24 February 2019


Joined 24 February 2019

बचपन की एक भूली बिसरी आस,
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असंभव में संभावनाओं की तलाश,


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जिस प्रकार प्राणवायु जरूरी होती है
शारीरिक पोषण के लिए
उसी प्रकार अनुभव जरूरी होते हैं
मानसिक पोषण के लिए

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मेरी जननी आज पंचतत्व मे विलीन हो गई।
घोंसला मेरे हवाले कर अनजानी हवा के साथ,
रिश्तो की ममतामयी टोकरी को समेटे,
मेरी जननी आज पंचतत्व मे विलीन हो गई।

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गीता जन्मी जिस धरा पर,
कुछ अदम अग्यार उसकी नींव हिलाने आए हैं।
ये धर्मक्षेत्र की वही धरा है, गजनी जैसे दुस्साहसी भी, आकर यहां पछताए हैं।

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उठा धनुष और चढा प्रत्यंचा,
तेरी वो टंकार अभी बाकी है।
आंख मूंद कर बैठ न जाना,
जयचंद का परिवार अभी बाकी है।

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उड़ सको तो लम्बी उड़ान भरो।
थोड़ी दूरी तक उड़ने वाले परिंदे,
सबसे पहले जाल में फंसते हैं।।

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Psychology transcends the Science
As mirror transcends the Image.

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हे तिरंगे!
लहराता रहे तू शान से,
वादा ये हमने किया।
पर मजबूर हुए हम,
जब अपनों ही ने तूझे कुचल दिया।।

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जीवन?
"मां की कोख से चित्ता तक की यात्रा"

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कोरोना से जीतनी है अगर जंग
मन से रहें मजबूत
और घर के दरवाजे रखें बंद।।

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