डाॅ. प्रवीण परदेशी   (डाॅ. प्रवीण परदेशी)
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काश!कि कुछ होता!
Joined 3 March 2019


काश!कि कुछ होता!
Joined 3 March 2019

ना बिछड़ पाते हैं, ना मिल पाते हैं।
गहरा हो गया है प्यार ;बस! डूबते जाते हैं।।— % &

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आज की चर्चा;
कल के लिए बेहतर है।

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तुम अपने आप से कितना प्यार करते हो,
ये इस बात से तय होता है कि
तुम कितने हठी हो।

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असली प्रेम वह है ;
जिसके,...खोने का डर नहीं।

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जब खाली वक़्त होता है तो तुम्हारी याद आती है ;
पर आजकल खाली वक़्त ही कहाँ होता है।

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उसने ईद के चाँद की चाँदनी भेजी,
मैंने दीवाली के दीपक की रोशनी समझ,
अपना घर रोशन कर लिया।

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तू ही मेरा है सहारा, डूबते का किनारा,
मैं विश नहीं करता, जन्मदिन तुम्हारा,
क्यूँकि मैं तुमसे हूँ हारा, फिर भी मनाता हूँ,
हर दिन जन्मदिन तुम्हारा... happy birthday

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अनजानी-सी राहें, व कुछ परम्पराओं ने मिलकर,
परिणय की रात में दिया मेरे कर में तेरा कर ,
ना पुरानी पहचान, ना पुराना प्यार,
फिर भी हमने एक -दूसरे को किया सहर्ष स्वीकार।
माना कि मुश्किलें आयी हज़ार,
दोनों के बीच हुई थी तकरार ,
क्योंकि कभी वन्दना तो कभी मुस्कान थी यार ,
फिर भी किया तूने सहर्ष स्वीकार।
हाँ मैं मानता हूँ नहीं थे तोहफ़े हज़ार,
पर जोकर बन किया प्यार का इज़हार,
नख़रे के साथ गालियां तो तूने भी दी थी हज़ार,
फिर भी तेरी पागलपंथियाँ सहर्ष स्वीकार।
अब हम आगे बढ़ते जाएंगे ,दोनों साथ निभायेंगे,
रोज रात को मेहनत करके ,दो से तीन हो जाएंगे।

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एक साल का कारवां ,देखे रस्ते अनेक ,
गोविंद और बिंदु ने मिलकर,
दी खुशांश की भेंट।
एक वर्ष खुशी से बीता,
कमियाँ रही अनेक,
आगे से हम वही करेंगे,
जिससे रस्ते नए खुलेंगे,
खुशांश से जो लड़ाई करेंगे,
उनको जल्दी नहीं करेंगे।😀😀😀

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समाज में महिला के योगदान को वही व्यक्ति समझ सकता है, जो जीवन व प्रकृति में पानी का महत्व समझता हो ।पानी का स्वयं का न तो रंग होता है, न जात, न पद, लेकिन जिसके साथ भी मिलता है उसे सार्थक बना देता है।,,,,माता भाग्य विधाता,,,,

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