कभी कभी सोचता हूं कि तू पास होता
महफ़िल-ए-शाम में तू भी साथ होता
वक्त बदलता रहा लेकिन दोस्ती नहीं
अगर दोस्ती पर क़िताब लिखता तो
उस का तू ही पहला किरदार होता
मैं ज्यादा उम्मीद तो नही करता
एक मुकमल दोस्त और दोस्ती की
पर जब भी उम्मीद करता तो
उस उम्मीद पर तू ही पूरा होता
कभी कभी सोचता हूं कि तू पास होता
महफ़िल-ए-शाम में तू भी साथ होता
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