– अंतर्मन के ज़ख़्म जो छुपे हैं गहराई में,
हर लम्हा उन्हें छिपाता हूँ मैं मुस्कानों की ओट में।
दर्द की इस चादर में लिपटे राज़ कई,
कौन जाने किस दर्द से है यह दिल भारी।
आंसू पोंछे हैं कितने, अपनी पलकों ने यहां,
गुज़र गए लम्हें कितने, बिना कहे, बिना सुने।
कोई नहीं है जो समझे, मेरे अंदर के मन की गहराई,
रह गए हैं बस, खुद के साथ, मेरे ये ज़ख्म तन्हाई।
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