एक नदी गुज़रती है
मेरे मन के बिल्कुल बीच से।
इस पार सब है खास नहीं
उस पार खास हैं सब नहीं।
वो नदी जो है मेरे मन की
पिछले दिनों से उफान पे है-
बाढ़ आयी है-
और एक किनारा डूबेगा।
मैं चाहता हूँ
कि जिधर खास खड़े हैं,
वो रह जाये,
मेरे मन का बाकी हर कोना बह जाये।।-
हर पत्थर को पानी लिखूँगा मैं
लिख दोगे ग़र रेत पर नाम मेरा
तो भी दर... read more
तुमने देखी ही नहीं हमारी फूलो जैसी वफ़ा,
हम तुम पर खिले, तुम पर मुरझा भी गये हैं।-
जीवन पहली, किसी को समझ ना आएगी
बुद्धि में रहने वाला भावों की मार खाएगा
भाव में रहने वाला अकेला ही रह जाएगा...-
ए ज़िंदगी मुझे अपने तौर तरीके सिखा दे
ना ज़्यादा ना कम, बस ज़रूरत भर बताते दे
ना पीछे देखने का वक़्त हो, ना आगे बढ़ने की आरज़ू
ये दुनिया जैसे चलती हैं, रहना बीच इसके सिखा दे
किसी के होने ना होने का, मुझे एहसास ना हो
बाकी जो तू चाहे, अपने हिसाब से चला दे
लोगों से पहले सोचना खुद के लिए शुरू करूं
मुझे कुछ ऐसा पत्थर दिल बना दे
अपनो की कही बात, जो दिल में लगे कभी
ऐसी बातों को भूलने की तरकीब सिखा दे
चाह कर भी किसी का मुझ पर बस ना चले
ऐ ज़िंदगी तू मुझे बस, अपनी तरह बना ले !-
जूते उतार देना
मेरी यात्राओं की समाप्ति की घोषणा नहीं थी
जीवन ने कुछ यात्राएं मुझसे नहीं पांव करवाई-
काबिल होकर भी
कामयाब न हुआ,
थोड़ा और अभ्यास
करूँगा मैं !!
बीत गया है
एक और साल यूँ ही,
पर एक और प्रयास
करूँगा मैं !!-
फिर लौटना ही भूल गए तुम
बस ये कोशिश आखिरी है सोच,
किया गया प्रत्येक प्रयत्न,
मुझे खुद से दूर बहुत दूर ले आया ....।-